कवि - रहस्य | Kavi - Rahasya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७)
नह्याजी के वरंदान से उन्हें एक पुत्र हुआ--जिसंका नाम
“काव्यपुरुषः हुआ ( अर्थात् पुरुष के रूप में काव्य )। जन्भ लेते ही
उस पुत्र ने यह छ्ोक पढ़कर साता को प्रणाम किया---
“यदेतद्वाब्मय विश्वमथ सूत्यां विवतते ।
साऽस्ि कान्यपुपानस्ब पादां वन्देय तावका ॥॥
अर्थात्--जि। वाड्डयविश्व ( शब्दरूपी संसार ) मूतिंधारण
करके विवरतमान हो रहा है सो ही काव्यपुरुष मैं हँँ। हे माता
तेरे चरणों को प्रणाम करता हूँ ।” इस पद्य को सुनकर सरखती माता
प्रसन्न हुई और कहा--वत्स, अ्रव तक विद्वान गद्य ही बोलते आये
आज तूने पथ का उच्चारण किया है। तू बड़ा प्रशंसनीय है । अब से
शब्द-अर्थ-मय तेरा शरीर हे---संस्कृत तेरा मुख--प्राकृत बाहु--अप-
भ्रंश जॉघ--पैशाचभाषा पेर----मिश्रभाषा वक्त:स्थल---रस आत्मा---
छन्द लोस--प्रश्नोत्तर, पहेली इत्यादि तेरा खेल--अनुप्रास उपमा
इत्यादि तेरे गहने है । श्रति ने भी इस मन्त्र मे तेरी ही प्रशंसा की ই
चत्वारि शृङ्ाखयाऽ्स्य पादा द शीर्ष सप्रहस्तासोऽस्य ।
त्रिधा बो इषभो रोरवीति मदो दैवो पत्या आविर |
সম ३।८।१०।३ ।
इस वैदिक मन्त्र के कई अर्थ किये गये हैं। ८ १) मारिल-
कृत तन्त्रवार्तिक ( १२।४६ ) के अनुसार यह सूय की स्घुति है।
चार शङ्गः दिन के चार भाग हैं। तीन पादः तीन ऋतु--शीत,
भीष्म, वषं । दो शीर्ष! दोनो छः छः महीने के अयन। सात
हाथः सूयै के सात घोड़े। “ त्रिधाबद्ध” प्रातः मध्याह-सायं-सवन
( तीनों समय से सोमरस खींचा जाता है)। वषभः वृष्टि का
मूल कारण प्रवतैकं । योरवीति,' मेध का गजंन । महोदेव, बडे
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