कवि - रहस्य | Kavi - Rahasya

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Kavi - Rahasya by महामहोपाध्याय गंगनाथ झा - Mahamhopadhyay Ganganath Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७) नह्याजी के वरंदान से उन्हें एक पुत्र हुआ--जिसंका नाम “काव्यपुरुषः हुआ ( अर्थात्‌ पुरुष के रूप में काव्य )। जन्भ लेते ही उस पुत्र ने यह छ्ोक पढ़कर साता को प्रणाम किया--- “यदेतद्वाब्मय विश्वमथ सूत्यां विवतते । साऽस्ि कान्यपुपानस्ब पादां वन्देय तावका ॥॥ अर्थात्‌--जि। वाड्डयविश्व ( शब्दरूपी संसार ) मूतिंधारण करके विवरतमान हो रहा है सो ही काव्यपुरुष मैं हँँ। हे माता तेरे चरणों को प्रणाम करता हूँ ।” इस पद्य को सुनकर सरखती माता प्रसन्न हुई और कहा--वत्स, अ्रव तक विद्वान गद्य ही बोलते आये आज तूने पथ का उच्चारण किया है। तू बड़ा प्रशंसनीय है । अब से शब्द-अर्थ-मय तेरा शरीर हे---संस्कृत तेरा मुख--प्राकृत बाहु--अप- भ्रंश जॉघ--पैशाचभाषा पेर----मिश्रभाषा वक्त:स्थल---रस आत्मा--- छन्द लोस--प्रश्नोत्तर, पहेली इत्यादि तेरा खेल--अनुप्रास उपमा इत्यादि तेरे गहने है । श्रति ने भी इस मन्त्र मे तेरी ही प्रशंसा की ই चत्वारि शृङ्ाखयाऽ्स्य पादा द शीर्ष सप्रहस्तासोऽस्य । त्रिधा बो इषभो रोरवीति मदो दैवो पत्या आविर | সম ३।८।१०।३ । इस वैदिक मन्त्र के कई अर्थ किये गये हैं। ८ १) मारिल- कृत तन्त्रवार्तिक ( १२।४६ ) के अनुसार यह सूय की स्घुति है। चार शङ्गः दिन के चार भाग हैं। तीन पादः तीन ऋतु--शीत, भीष्म, वषं । दो शीर्ष! दोनो छः छः महीने के अयन। सात हाथः सूयै के सात घोड़े। “ त्रिधाबद्ध” प्रातः मध्याह-सायं-सवन ( तीनों समय से सोमरस खींचा जाता है)। वषभः वृष्टि का मूल कारण प्रवतैकं । योरवीति,' मेध का गजंन । महोदेव, बडे




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