जैन व्रत कथायें | Jain Vrat Kathayen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
64
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९५
हुआ था । यह देखकर शुणधर डर गया किन्तु फिर
उसने थोड़ी हिम्मत की ओर हाथ जोड़कर नागराज
से कहा-नागराज | या तो आप मेरी दराँत छोड़ दें
वरना आप घुझे! भी उस लें क्योंकि इसके जिना
वापिस घर नहीं जा सझता ॥
- इस प्राथना पर स्वग में धरणेन्द्र का आसन
'कंपायमान हुआ। अवधिज्ञान से गुणधर को, छुसीबत
सें जानकर धरणेन्द्र ने. उसकी सहायता के लिये
पद्मावती को भेजा: ১ ৩ খু
न 11
) ६ )
पद्मावती ने बालक के सामने प्रगट होकर बरूत
सी सम्पति दी ओर उससे कहा कि मय मत करो |
पाश्णनांथ स्वाधी छा संदा स्मस्शकसे ओर रविवार
के दिन वत किया करो: इतता कहकर पद्मावती
अन्तर्ष्यान होगे :, 2০7 5০10 दो
ঈদ
मैनो
गुणधर सम्पत्ति पाकर बहुत हित हुआ ओर
घर जाकर >अपन - भाईयों को., सारी . कहाती कह
सुनाई | भाई भी बहुत ह्पित हुये. ओर धर्म में दत्त
चित्त हकरं प्रत्येक रविषार फो व्रत करने लगे,
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