भीष्म- प्रतिज्ञा | Bhisham Pratigya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42.06 MB
कुल पष्ठ :
1108
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दर महाभारत
वन
ना
खड़े हुऐ आ सभा में, सीघे सरल सुभाय ।
देखा चारों ओर को, दृष्टी तनिक घुमाय ॥
देखा, वह सभा मनोहर है, मणिमय खंभे हैं खड़े हुऐ ।
मन हरण दृष्य गिरि नदियों के, दीवारों पर हैं बने हुऐ ॥
मणियों की कान्ति रत्नों का तेज, लख चकाचोंध सी आती है ।
जिस तरफ दृष्टि जा पड़ती है, बस यहां अटक रह जाती है ॥
एक तरफ अमीर उमराओं में, है क्षात्रतेज चमचमा रहा ।
और तरफ दूसरी सुनियों में; है. ब्रह्मतेज दमदमा रहा ॥
भूपति के लिये मध्य में इक, कंचन से जड़ा सिंहासन है ।
जिसके समीप ही रस्न जटित, सगचम सहित गुरु आसन है ॥
महाराज परिश्चित के सुपुत्र, जन्मेजय अति छवि छाये हुये ।
सिंहासन पर हैं टिके छुसे; मंत्रियों सहित हथांसे हुये ॥
उन्नत लिलाट, आजान याहु, ऐश्वयवान शोमित यों |
मानों बैठे हें घिरे हुये, महाराज इन्द्र सुरगणों में उयों ।'
के
च्यासदेव का जब लग्वा, अति तेजस्वी रूप |
उछे समासदगण सहित, इन्द्रपस्थ के भूप ॥
आगे आजा तुरत प्रणाम किया, आर प्रजन अच प्रदान किया ।
फिर गुरु आसन पर विठलाया, सब प्रकार से सन्मान किया ॥
इसके उपरान्त कुचल प्रूछी, फिर वोले किम जागमन हुआ |
हे नाथ छुक्म है कया. खुझको, दान कर चित्त प्रसन्न ॥
यथा योग्य सन्मान से, हुये सुनि नाथ ।
आशिवाद॒ प्रदान कर, फरा सिर पर हाथ ॥
कौरव पांडव यंश में, रहा न कोइ वीर 1
पुत्र तुम्हारा वच रहा, केवल एक शरीर ॥
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