नीलमदेश की राजकन्या और अन्य कहानियाँ | Nilam Desh Ki Rajkanya Aur Anya Kahaniyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
695 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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५ \^ ।
श्या
लो, मैं बम्बई आ गया । आज मुझे यहाँ चौथा रोज है | तुम शायद समझते
होगे, मैं लिखगा कि बम्बई मुझे नरक माल्म होता है | ऐसा नहीं है । नरककी
कोई बात नहीं। आदमी बेचारा है ओर लाखोंकी तादादमें इकट्ठा हो
जाने पर भी उसमें यह सामर्थ्य नहीं कि वह अपने मनके बाहर कहीं नरक पैदा
कर सके । तुमने कहा था कि मैं बम्बई रहूँ । वहँ। जो भागाभागी ओर आपा-
धापी मची हुई है, उसके स्पर्शमें पढ़ेँ | तुम जानते थ कि मुझमें योग्यता है,
तब प्रमाद भी है । और शायद तुम्हें भरोसा था कि चारों ओरसे स्पद्धाकि दबाबमें
पढ़कर प्रमाद उड़ जायगा और मेरे भीतरकी योग्यता नखर उटेगी ।
मैं नहीं जानता प्रमाद मुझमें कितना है । अगर वह है तो फिर अगाध है और
अकारण नहीं है| खैर, वह होगा । अभी यहाँके व्यग्र जविनके आवर्त-चढ्रेमें
तो यद्यपि म नहीं गया फिर भी उस जीवनके प्रवादे उतर चल हू | उस
धाराके बीच अपनेको स्थिर रखनेमें कठिनाई मुझे होती नहीं लगती हे |
इ्याम, में अपने जड्जलमें रहता था। वहाँ कुछ में ही थोड़े था--
घास थी, पौधे थे, पेड़ थे, पक्षी थे | इन सबके बीच मैंने अपनेको
कभी अकेला नहीं पाया। फिर क्यों और कैसा यह तुम्हारा आग्रह कि
मैं जन-सड्डुल इस बम्बईमें रहूँ | तुमने समझा हो कि शायद तुम मुझे अपने
अकेलेपनसे बचा रहे हो | पर में अकेला कभी था नहीं, कभी होऊँगा भी
नहीं । क्योंकि, झत्यको भी अपना साथी बना लिया जा सकता है। लेकिन क्या
तुम सचमुच समझते हो कि इस बम्बईमें और उस हिमालयकी तराईके जेगलमें
बहुत अंतर है ? अंतर तीं है, पर वह बहुत नहीं है। वह अंतर इतना ही है
कि वहाँ आदमियोंकी न होकर पेदोंकी भद थी। पेद क्या कम जीते हैं !
क्या वे कम विचित्र हैं ! क्या वे कम दुष्ट और अधिक साधु होते हैं ! हैँ, वे
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