तत्त्व चिन्तामणि भाग - 6 | Tattv Chintamani Bhag - 6
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
456
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महात्मा भीष्मपितामह १द
ये {; यह सुनकर उन्होंने मीष्मको युद्धके लिये छछकारा | भीष्मने उनकी
चुनौती खीकार कर ली । फिर तो ुरु-रिष्यमें भयङ्कर युद्ध छिड गया ।
तेईस दिनोंतक लगातार युद्ध होता रहा । परन्तु किसीने भी हार नहीं
भानी | अन्तमें देवताओंने तथा मुनियोंने बीचमें पड़कर युद्ध बंद करा
दिया। इस प्रकार भीष्मने परञ्यरामकी बात भी न मानकर अपने
सत्यकी रक्षा की तथा अपने अद्भुत पराक्रमसे परशुराम-जैसे अद्वितीय
धनुर्घरके भी छक्के छुडा दिये। सत्यप्रतिज्ञता और बीरताकी पराकाष्ठा
हो गयी |
महाभारतयुद्धे कौरवपक्षके सर्वश्रेष्ठ योद्धा भीषम ही थे |
अतएव कौरव-दखके प्रथम सेनानायक होनेका गौरव उन्हीको प्राप्त
हआ । पाण्डव एवं कौरव-दोनेकि पितामह होनेके नाते उनका दोनोके
प्रति समान प्रेम एवं सहानुभूतिं थी तथा दोर्नोका ही समानरूपमें वे हित
चाहते थे। फिर भी यह जानकर कि धर्म एवं न्याय पाण्डवोंके ही
पक्षमें है, वे पाण्डबोंके साथ विशेष सहानुभूति रखते थे और हृदयसे
उनकी विजय चाहते थे । परन्तु दयसे पाण्डवोकि पक्षपाती होनेपर
भी उन्होंने युद्धमें कभी पाण्डवोंके साथ रियायत नहीं की और प्राणपणसे
उन्हे जीतनेकी चेष्टा की | युद्धके अठारद दिनोंमेंसे दस दिनोंतक
अकेले भीष्मने कौरवोका सेनानायकत्व किया और इस बीच पाण्डव-
पक्षकी बहुत-सी सेनाका संहार कर डाल । वृद्ध होते हए भी युद्धे
उन्होंने ऐसा अद्भुत पराक्रम दिखाया कि दो बार खयं भगवान्
श्रीकृष्णको হা न लेनेकी अतिज्ञा होते हुए भी अज्जैनकी रक्षाके
लिये उनके मुकाबलेमें खडा होना पडा | अर्जुनका बल क्षीण होते
देख एक वार तो वे चक्र लेकर उनके सामने दौड़े और दूसरी वार
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