आशा पर पानी | Asha Par Pani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : आशा पर पानी  - Asha Par Pani

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जगदीश झा - Jagdish Jha

Add Infomation AboutJagdish Jha

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
९ पहला परिच्डेद्‌ विवाद के योग्य दो गई, इसकी फ़िक् भी छोड़ दोजिए। हाँ, उसके लिए उपयुक्त पान्न का अजुसन्धान करते रहिए। ईश्वर कार्य में आपकी सद्दायता करेगा, उसकी बड़ी सस्वी शुज्ञा है, चद सबकी खुधि लिया करता है ।” “पुक्कको भी.ऐसा ही विश्वास है, किन्तु खाली दाथ काम कैसे चल्ले ? किसी प्रकार जीवन निर्वाह कर रहा हूँ। मेरे पाल एक कौड़ी भी नदीं वचती । रूत्री के पास एक भी गहना नदीं है । श्रापसे क्या छिपाऊँ, मेरी अवस्था ऐसी चिन्तनीय है कि कष्ट का कल्लेज़ा भी काँप ज्ञाता होगा 1 पर क्या किया जाय, लाचारी है। आज तक मैंने किसी से किसी प्र्ञार की सहायता भी नहीं चाही है, यह इसलिए कि भिक्षा-वृत्ति से उत्यु दी अच्छी है। किसी भ्रकार रूखा-खूखा खाकर या भूखा रह कर भी घर में रहना ही अच्छा समझा है। रत्री प्रायः रुूणावस्था में ही रहा करती है। उसकी चिकित्सा भी अच्छे वैद्य वा डॉक्टर से नहीं करा सका हूँ। प्रथम तो मेरे पास नगदनारायण दो नहीं, दूसरे ये महाशय प्रायः ऐसे हृदय-हीन हुआ करते हैं कि किसी की गिड़गिड़ाहट पर ध्यान नहीं देते । इसीलिए विवश होकर स्वयं वैद्यक ग्रन्थों को पढ़ कर आप ही ओषधि वना लिया करता ह, श्रभी तक उसी से कार्य चल रहा है। समाज की अवस्था ऐसी विगड़ गई है कि दीन-ढुख्षियों की श्रोर किसी की दृष्टि ही नहीं दौड़ती,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now