गोम्मटसार [जीवकांड] | Gomattsar (jeevkand)

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Gomatsar (jeevkand) by पंडित खूबचंद्र जैन - Pt. Khoobchandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रायचन्द्रजेनशास्रमालाद्वारा प्रकाशित ग्रन्थोंकी सूची । 1 ९ पुरुषाथसिद्धञ्चपाय भाषाटीका यह ध्रोभश्वतचन्रघवाम विरचित प्रसिद्ध शाख दे । इसमे आचार- संबनन्‍्धी बडे २ गूढ रहृ््य हैं। विशेष कर हिंसाका स्वरूप बहुत खूबीकेसाथ दरसाया गया दे । यह एक वार छपकर विकगयाथा श्सकारण फिरसे संशोधन करके दृ सरीवार छपाया गया है । न्यो. १३. १ पञ्चास्तिकाय संस्र. भा. टी. यद श्रीकुन्दकुन्दाचार्यक्रत मूठ भोर श्रीअस्तचन्द्रसूरीकृत सं्छृतटीकासदित पदे छण था । अवकी वार्‌ इसकी दूसरी भावृत्तिमें एक सैस्‍्क्ृतटीका तात्पयवृत्ति नामकी जो कि श्रीजयसेनाचार्यने बनाई है अथैकी सरलताशोलिये लगादी गई है । तथा पहली संस्कृतटीकाके सृक्ष्म अक्षरोंको मोदा करादिया है और गाथासूची व विषयसूची भी देखनेकी सुगमताके लिये लगादी हैं । इसमें जीव, अजीब, धर्म, अघम और आकाश इन पांच द्रव्योका ते उत्तम रीतिषे वर्णन दै तथा कालद्रन्यका भी संक्षेपसे वणन किया गया है । इसकी भाषा टीका स्वर्गीय पांडे देमराजकी भाषादीकाके अनुसार नवीन सरऊ भाषाटीकामें परिवतेत कीगई है। इसपर भी न्‍्यों, २ रु, ३ ज्ञानाणेव सा. दी. इसके कत्ती श्रीशुभचन्धप्वामीने ध्यानका वर्णन बहुत द्वी उत्तमताप्ते किया है । प्रकरणवश ब्रह्मचय्रतका वणेन भी बहुत दिखलाया हैं। यद्द एकवार छपकर विकगया था भष द्विीयवार संशोधन জবা ভাসা হাতা है । न्‍यों, ४ रु, 8 सप्तमद्ठीतरंगिणी भा. टी. यह न्यायका अपूर्व ग्रन्ध है इसमें प्रंथकतता श्रीविभलदासर्जाने स्थादस्ति, स्यान्नास्ति आदि सप्तभद्री नयका विवेचन नव्यन्यायकी रीतिसे किया दै । स्याद्रादमत क्या है यद जाननेक्रेलिये यह मेथ अवश्य पढना चाहिये । इसको पहली आावृत्तिमं की एक भी रति नदीं रदी भब दूसरी भ्रति शीघ्र उपकर प्रकटित द्वोगी । न्‍यों, १ रु, ५ वृहद्द्वव्यसंग्रह संस्क्ृत मा. टी. श्रीनेमिचन्द्रत्वामीकृत मूल ओर श्रीव्रद्मदेवजीकृत संस्कृतटीका तँथा। उसपर उत्तम बनाई गई भाषारंका सहित दै 1 इमं छद द्र््योका सकूप भतिस्पश्रीतिसे दिखाया गया है। न्यों, २ रु, ६ द्रव्यानुयोगतकेणा इस प्रथमं शाल्लकार श्रीमद्धोजसागर्जनि सुगमतासे मन्ददुदिजीवेको दव्य. कषान देनेकेलिये † अथ, ^ गुणपथयवद्रभ्यम्‌ = इस मद्दाशान्न तत्त्वाथसूत्रके भनुकूल द्वव्य--ग्रुण तथा अन्य पदार्था भी विरोप्र वणन किया दे भैर प्रसंगवक्ञ ' स्यादस्ति: आदि सप्तमद्रोका भौर दिग॑दराचा- यैवथ श्रीदेषघेनस्वामीविराचित नयच्क्रके आधारसे नय, उपनय तथा मूलनयोका भी विस्तारे वन किया है। न्यो, २. ७ सभाष्यतच्वाथाधिगमस् इसका दृश्रा नाम तत्त्वार्थाधिगम मोक्षशात्ष भी है। जैनियोंका यह परममान्य और मुख्य प्न्य दै। इसमें जनधमैके संपूर्णसिद्धान्त आचार्यवर्य श्रीउमास्वाति ( भी ) जीने बढे धवसे संग्रह किये हैं । ऐसा कोई भी जैनसिद्धान्त नहीं है जे। इसके सूत्रोंमें गर्मित न हो । सिद्धान्तस्तागरक्की एक अत्यन्त छेटेसे तत्त्वाथरूपी घटमें भरदेना यह कार्य अनुपमसामथ्यवाले इसके स्वयिताका ही था। तत््वा्के छोटे २ सूत्रोंके अथगांभीयकों देखकर विद्वानोंको विस्मित होना पढता है। न्यों, २ रु, < स्याद्वादमश्नरी संस्कृत भा, दी. इसमें छहो मतोंका विवेचनकरके टीका कर्ता विद्वद्य श्रीम- हिपेणसूरीजीने स्याद्वादको पूर्णछपसे सिद्ध किया हे । न्यो. ४२. ९ गोम्मटसार ( कर्मकाण्ड ) संस्‍्कृतछाया और संक्षिप्त भाषादीका सह्दित । यह महान्‌ ग्रन्थ ध्रीनिभिचन्द्राचा्यसिद्धान्तवक्रवर्तीका बनाया हुआ है, इसमें जैनतत्त्वोॉका स्वरूप कहते हुए जीव तथा




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