पौराणिक इतिहाससार | Pauranik Itihasasar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर हद ही पं पर राशिकं इतिहाससार, श्प्र : याद शरीर के:नांश होने. से कोई नग्न. होता तो सेंबही : दारीर :. नाश, होते रहते हूं फिर नग्न क्योंकर न. हुये-यदि. त:नग्न होने : की इच्छा रखंता हें' तो अहंस अरूं त्यागका 'छोड़दे ये दो वस्तु : जिंस श्पानपर, नहीं हें वहां झापही . आप है और उन्हीं नग्सों ' में! .से.'एक से. भी हु और यदि तुने अपना शरीर भी जलों: या: और ..लोक' .परछोक. की कामना लोशको न प्रा हुई तो. इस: जक्नने. से. क्या:खाम है; नसन चही- है जो शरीर की बिं- :'वयमानता मैं - लोक परंछोक॑ से छटजावे । भष ' घव की कथा सुना मेरे कहने का प्रयोजन थहहै कि त अपने स्वरूप को प्रात होवे कया के यह -सनुष्य का. दरार दुलेस हैं यादि.. नाश होगया ' तो फिर न-सिलेगा इससे इस मनुष्य तन को दुलेंभ. ज्ञानकर :गोधविन्दजीकां सज्न कर यदि एछो कि. गोविन्द्जीका, भजन कया है तो. गोविन्द्जी से अतिरिक्त कोई नहीं जिस परुषका ' मोविन्दजी में निश्चय है वह रनान, ध्यान, पूजन, तपेण, भोन : जन, शुयनादि, सम्प्रण कार्यों में गोविन्द्जीही को व्यात्त सम- कताहै यदि तुम्हारी इच्छा नरंन होने की है तो सुक्ष्म अह्दकार को त्याग, करो और यह सम को कि न में किसी का. हूं'नः कोई :'मेरों हैं. जन्म:मरण संक््म अद्दकार से. होता है जब: इतना ज्ञान रास होजावेगा तब आपडही आप जन्म सरणं,से सुक्त दोजावांगे “यदि शृंक्रा करो कि सक्ष्म अहकार कया वस्तु हे.तो समझो: कि : सिवाय शोविन्दजो के और किल्ली को ,मातना यहीं सूक्ष्म अह- कार है. तमको. उचित है कि इस ध्षणभंगी शरीर की:श्रीति को क स्यार्ग 'करके 'श्रीगोविन्दजी से.जाकर मिलो; इतनी बातों: सुनकर त्यजी बोले कि.अब: आप कुपा प्रवक' सझे घुवजी को. कथा सुना ' कि दर इये तंत्र पराशुर जी बोले कि तुसको घुंव को कथा .सबया अया- जन है तम.आंपी' शरीरके- आम, विष बचे हो और चाहतहो के श सा वंक्रो कथा सनकर, सक्त 'होजाव यह आंत डुस्तर .ह६..याद जम “को सपा दो तो. सुमभी शव के समान दीसके हो तब मैन्रयंजीने न




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