सचित्र पूजवली | Sachitra Poojavali

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Sachitra Poojavali by रामाधिन सिंह - Ramadhin Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साम्रेपूना । ७ ॥ गल ॥ भी शान्ति जिननो कट कहि एं (ए वाल । भी तीरथपतिनो) कटश मनन गाड्यै सुखकर ; नर सेत्र मण्डण दुह दिहण्टण्‌) भविक मम्‌ आधार । तिह राषराणा हरस उच्छ; थयो जग जयकार ; दिशि कुमरी अवधि विष नाणी) ह्यो हरस अपार ॥ १ ॥ निय अमर अमरी सङ्घ मरी, गावती गुणन्द्‌ ; जिन जननी पापे आय पहुती, गहकती आनन्द । हे माय ते जिनरज जायं) शच वधायो रम्म; अम जम्म निम्मर करण कारण, करसि सूज कम्म ॥ २ ॥ ति भूमि क्षोधन दीप द्रपन; बाय वस्षणधार; तिहां फारेय कदी गेह भिनवर, जननी मलन- कार । इर राखड़ी जिनपाणि बंधी) दीये इम आसीस्‌ । पुगकाद काड़ो चरजनीषो, धमेदायक इस ॥ ३॥ ॥ रार ( उष्वाङानी ॥ ' निनरयणीजी दर दिश उजरता धर, सुभलगनेंनी ज्योतिष चक्रते संच्रै। निन जनम्याजी जिण अवसर माता घरे, तिण अवसरजी इन्द्रासन पिण थर हरे ॥ | ॥ इदक॥ परहरे.आसन इन्द्र चिन्ते कौन अपसर ए वन्यौ, जिन अन्म इच्छष्‌ काट जापी मतिहि आनन्द ऊपनो। निन सिद्ध




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