ग्रामीण समाज | Gramin Samaj
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग्रामीण समाज १३
जूता खरिदवा दिया ! आर फिर ठम वदी जूता पहनकर वेणीकी तरफसे
गवादी दे आये ! खक् खक् खक् । *
गोविन्दकी आँखें छाल हो आई। उसने पूछा--मैंने गवाही दी !
धर्म०-- गवाही नहीं दी १
गो०--चल झूठा कफहींका ।
घर्म०-- झठा होगा तेरा बाप !
गोचिन्दने अपना दूय हुमा छाता हाथ उठा लिया और उछलकर
कहा--अच्छा, तो आ साले !
घर्मदासने अपनी बॉसकी लकड़ी ऊपर उठाकर हुँकार किया और तब फिर
खूब जोरोंसे खॉसना झुरू कर दिया। रमेश घबराकर दोनोंके बीचमे आ खड़े
हुए. और स्तंमित हो रहे | धर्मदास अपनी लकड़ी नीचे करके জীব हुए
बैठ गये और बोले--मैं रिश्तेम उस सालेका बड़ा भाई होता हूँ कि नहीं।
इसीलिए, सालेकी अक्विल तो देखो--
गोविन्द गाँगूली मी अपने हाथका छाता नीचे रखकर यह कहते हुए, बैठ
गये--हैं; यह साला मेरा बढ़ा भाई ই।
शहरके हलवाई अपनी भट्टीका ध्यान छोड़कर यह तमाशा देख रहे थे।
चारों तरफ जो लोग काम घन्वेमे लगे हुए; थे, वे लोग भी यह हो-हछा
सुनकर तमाशा देखनेके लिए आ पहुँचे । लड़के-बचे खेल छोड़कर लड़ाईका
मजा छेने लगे और उन सब लोगोंके सामने रमेश লাই তলা और आश्चर्यके
हत-बुद्धिकी तरह स्तव्घ होकर चुपचाप खडे रहे | उनके मुँहसे एक बात भी
न निकली [यह क्या हो रहा है! दोनों ही इड्ध, भले आदमी और ब्राह्मण-
सन््तान है। ऐसी मामूली-सी बातपर ये लोग नीच जातिके लेगोंकी तरह
गाली-गलछौज कर सकते हैं ! बरामदेमें बैठे हुए भैरव कपड़ोंके थाक लगा रहे
ये और ये सब वार्ते देख और सुन रहे ये। अब वे उठकर वहाँ आ पहुँचे
सौर रमेशसे कदने लगे--फोई चार सो घोतियोँ तोदो चुकी] क्या अभी
ओर घोतियोंकी जरूरत होगी १
लेकिन रमेशके मुँहसे हठात् कोई बात ही न निकली | रसेशका यह
अभियूत भाव देखकर मैखको ईैसी मा गई ! उन्दने बहुत ही कोमल स्वरसे
समझाते हुए कहा--छीः गेगूली महाशय ! बाबू तो बिल्कुल दी अवाक् हो
गये हं वावू, मप इन सब्र वा्तोका कुछ खयाल न कीनिएगा } इस तरहकी
ग्रा, २
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