स्वाधीन विचार | Swadheen Vichar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Swadheen Vichar by नारायण प्रसाद अरोड़ा -Narayan Prasad Aroraलाला हरदयाल - Lala Hardayal

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

नारायण प्रसाद अरोड़ा -Narayan Prasad Arora

No Information available about नारायण प्रसाद अरोड़ा -Narayan Prasad Arora

Add Infomation AboutNarayan Prasad Arora

लाला हरदयाल - Lala Hardayal

No Information available about लाला हरदयाल - Lala Hardayal

Add Infomation AboutLala Hardayal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
৬ 4 ১৯১] ' ही व्याख्यान देते हैं| राधास्थामी वाके भी আনন লব ঈ সন हिन्दी मे ही लिखते रै! इन सव समाजो ओर संप्रदायो से हिन्दी की कुछ कुछ उच्चति द्म रही है । आर्य्य-संमाज ने फारसी अक्षरों में बहुत से हिन्दों के शब्दों को स्थान दिया | इसस्प्र ञ्रो हिन्द हिन्दी नदी जानते उन तक हिन्दुत्व की कुछ सुगन्ध,पहुच , सकती है। इस हिन्दी मिश्रित उदः करो ग्राछिव ओर जोक के कैछाम के 'चाहने -वाले निरादर की निगाह से देखते है ! परतु यह नैष भूल है। आजकरू युचक विद्यार्थर दूर दूर कालिजों में पढ़ने जाते हैः! परन्तु अपनी लियो को धर धर छोड जाते हैं | उन्हें पत्र लिखना पंड़ता. है । हमारी चियां भरथः हिन्दी ही जानती ह । उन्होंने तो नौकरी के लिये, अपना ज्ञाति धर्म बेचा नही | वे अब तक अपनी ज्ञाति-भाषा को रत्न की तरह छिपाये अंतःपुर ` मँ बेटी हैं कि कब पुरुषों की बुद्धि ठिकाने आये और कब उनको बह अनमोल मोती फिर प्राप्त हो । क्यों न हो, वैसे भी तो घरकी सम्पत्ति खोने चांदी के रूप में स्त्रियों ही के शरीर पर रहती दै ! इस कारण नवयुवक वावू साहो को हिन्दी पद्नी पडती है की काम वे शुरु के कहने से न करते थे वह स्मरशासन करवा छेता है।,सच है सब तो त्रिलोचन नहीं हैं जो फल के धलुष वाले को भस्म कर दें। अतणव जितने विद्यार्थी दूर देश में जादयंगे उत्तनाही हिन्दी का प्रंचार अधिक होगा | ' इस प्रकार हिन्दी धीरे धोरे फेल रही है। पर इस जनवासे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now