गो-सेवा की विचारधारा | Go Seva Ki Vichardara

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Book Image : गो-सेवा की विचारधारा  - Go Seva Ki Vichardara

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोरज्ञा की शर्ते १५ परायण व्यवस्था मे चलनेवाले जीवद या-लाते को देखने का मुझे अवसर मिला | वम्बई में इस वक्त आवारा फिरनेवाले ओर अनेक तग पैदा करनेवाले दुधारू ढोगे के खानगी तवेले बीच बस्ती मे हैं, जहां ढोरों को फिरन-डोलने की भी जगह नहीं होतो और जहाँ से अच्छे-से-अच्छे पशु असमय ही कसाइखाने चले जाने हैं। ऐसी स्थिति में अन्त में सम्पूर्ण परिवर्तेत कर डालने के प्रभंसनीय देतु से यह खाता दुग्धालय का प्रयोग कर रहा हू । परन्तु इम खाते के अच्छी तरह चलते हुए भी उसमें कितने ही मृलभूत दोप हैं, जिनकी तरफ मुझे खाते गा भ्यान खौचना पड़ा । रक्ता करते हुए मुझे! गोरक्षा काय को कितनी ही शर्त अकित करनी पड़ी । इन्हे फिर एक वार यहाँ रख देना अ्रप्रासंगिक होगा : (१) पसी हर संस्था वन्ती से खुद दूर खुले से होनी चाहिए, जहौ घास दा श्रार पणशुश्रो को धृमन के लिए वहत यानी हजारो एकड़ जमीन हो । अगर सारी गोशाल मेरे हाथ में हो, तो गायो की आयात के काम के लिए जितनी उपयोगी दौ उतनी रहने देकर वाकी सभी गोशालाएँ अच्छी कीमत पर वैच डालूँ ओर पडोस में ऊपर कहे अनुसार खुली जमीने ल्‌ । (२) हर गोशाला को नमूने का दुः्घालय ओर नमृन का चमालय वना डालना चाहिए। एक-एक मरे हुए ढोर को फेक ठन के बजाय रखना चाहिए आर उस पर सभा शाद्वीय क्रियाएँ जरके उसके चमड़े, हड्डियो ओर अंतड़ियों बगरह सच चीन का प्मधिक-से-चधिक उपयोग कर लेना चाहिए | मैवा कन्ल दोनेवाले जानवरा के चमड या दृसरी चीलो के युकावते मे मरे हुए जानवरों के चमड़े को पत्चिच्च ओर खास तोर पर काम में লিল ভাবত सप्तकूदा हैं । दत्ल होतेवाल सानवरों ले हाउ-सास से




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