पण्डित जी | Pandit Ji
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पण्डितजी १,७
परन्तु, स्वभावत. वे धीर प्रकृतिके आदमी हैँ । किसी भी कारणसे अधिक विच-
चित नहीं होते। थोदी देरतक चुप रदनेके उपरान्त उन्दने अपने आपको संभाला
ओर अन्तमं वहुत दी सहज चान्त भावसे पूछा--कुंज भइया कहाँ हैं १
कुसमने कदा--माद्म नदीं । मुझसे कुछ कहे-सुने विना ही सबेरे उठकर
कहीं चले गये हैं ।
बृन्दावनने थोडी देर तक चुप रहनेके उपरान्त कहा--अच्छा, वे गये तो
जाने दो | में तो हूँ । क्या घरमें खाने-पीनेकी कुछ भी नहीं है ?
“ नहीं, कुछ भी नहीं है। सब चीजें खतम हो गई है, और एक पेसा भी
इस समय मेरे हाथमें नहीं है। ””
बृन्दावनने कहा--इस गाँवमें तुम्हारी तरह मुझे भी सव लोग जानते हैं।
में सब चीजें खरीदकर मोदीके हाथ भिजवा देता हूँ, मुझे एक अँगोछा दे दो |
में अभी स्नान करके आता हैँ। यदि मां पूछें, तो कह देना कि नहाने गये हैं ।
अव तुम यहाँ खड़ी मत रहो । जाओ
कुसुमने अन्दर कोठरीमेंसे अगोछा लाकर दे दिया ।
अँगोछेकी माथेपर लपेटते हुए छुन्दावनने हँसकर कहा--तुम कुंज भइयाकी
वहन हो, इसीलिए वै तुम्हें इस प्रकार छोड़कर भाग सके हँ 1 यदि भौर कोई
होतीं, तो शायद, इस प्रकार न छोड सकते ।
कुसुमने वहुत ही धीरेसे उत्तर दिया--सब लोग तो इस तरह नहीं छोड़
सकते, पर कुछ ऐसे हैँ जो खूब मजेमें छोड सकते हैं ।
इतना कहकर कुसुमने आइमेंसे ही इन्दावनकी ओर देखा कि इस वाते
वास्तवमें उनके हुद्यपर किस प्रकार आघात किया है।
वृन्दावनने वहाँसे चलनेके लिए पेर उठाया ही था कि फिर रुककर धीरेसे
कहा--तुम्हारा यह भ्रम शायठ किसी दिन भंग हो जायगा । बचपनमें अपनी
मौके किसी दोषके किए जिस प्रकार तुम जिम्मेवार नहीं हो, उसी प्रकार अपने
पिताकी भूछके लिए में भी जिम्मेवार नहीं ट्ू/ँ। पर जाने दो, इन सब झगड्ोंके
लिए अभी समय नहीं है । जाओ और रसोईका इन्तजाम करो ।
कुछुमने कह्ा--भला बताओ, में रसोईका क्या इन्तजाम करई १ यदि अपना
सिर काटकर पकाझें और उससे तुम लछोगोंका पेट भर सके, तो कहो, में वह भी
करनेके लिए तैयार हैूँ।
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