भगवती कथा खण्ड - 9 | Bhagvati Katha [ Khand - 09 ]

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Bhagvati Katha [ Khand - 09 ] by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दत्त मगवान्‌ की संहस्रार्जुन पर कृपा १३ ४-मेरे सहस्त बाहुएं हो जाय॑, जिससे पांच सौ वाण एक साथ छोड सक्ू' । ५-आकाश, पृथ्वी, पर्वत, पाताल, स्वर्ग आदि में सर्वत्र मेरी अन्ाहत गति हो, जहाँ चाहूँ तहाँ चला जाऊँ। ६-मभेरो विशिष्ट पुरुष भर्थात्‌ भगवान्‌ के हाथ से ही मृष्युहो। ও- সুতি श्रौर निवृत्ति दोनों ही मार्गों का मे ज्ञाता होऊ । ८-मेरा धन, धान्य कोप सभी भक्षय हो । भतिथिमेरे यहाँ से विमुख न लौठें; मे संसार में श्रपने समय का द्वितीय भूप होऊ 17 भगवान दत्तात्रेय तो प्रसन्न ही थे। उन्होंने तथाउप्तु कहकर महाराज को सभी वरदान दिये । तभी से उनका नाम सहस्रार्जुन हो गया । सदस्न बाहुम्रों में पाँच सो धनुष चढ़ा कर वे एक साथ अकेले पाँच सो बाण छोड़कर शत्रुओं को आश्चर्यान्वित कर देते थे। वे भ्रपने समय के भ्रद्वितीय शूर, वीर, योद्धा हुए । राजघानी में आकर समस्त मन्त्री, पुरोहित श्रौर प्रजाजनों नै उनका राज्याभिषेक किया और वे बड़े झानन्द के साथ सप्तद्वीपवत्ती समस्त वसुधा का शासन करने लगे । उनका सामना करने वाला कोई भो वीर नहीं हुआ | उनको संसार के सवश्रेष्ठ सम्नाटों में गणना है । सूतजो कते ई--““मूनियो 1 भगवान्‌ दत्तात्रोय के प्रसाद से कुतवीय के पुत्र सहस्नार्जुन ने इस प्रकार इस लोक की सर्वोत्तम समृद्धि और परलोक में सर्वश्रेष्ठ गति प्राप्त की ।” इस पर शोनकजो ने कहा-“सूतजी ! भापने महाराज सहस्ताजु न के बल, वीये, पराक्रम, तेब आदि की बड़ी प्रशंसा की । उन्होंने दत्त भगवान्‌ को रृपा -से समस्त ऋंड्धि सिद्धियों को




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