भाषा पिंग्दल [खण्ड १] | Bhasha Pingdal [Vol. 1]
श्रेणी : भाषा / Language
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
280
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| (१७)
तज लोकलाज विधवा को भी परणावे ।
অহ मेघ-माल लख मनमयूर दरसावे ॥ २ ॥
पर विचार कौने-जो जन आयू सारी ।
को पापकप में नह्टू-दुए था भारों॥
जिन करी जन्म भर-हिंसा, चोरी, जारी ।
मरने पर मोच्छा किया पत्र ने भारी ॥
उस लीला से क्या बने / किया फल पावे । .
यह मंघ-माल खख मनमयूर हरसावे || ३ ॥
गंगाजल आदि पवित्र विपल सुखदाई।
प्र पुक्ति-पंथ तो ज्ञान सिवा नहिं भाई ॥
“ভি বাম पिनाशे पप्र सोचिये प्यारे ।
तब दुख. में क्यों फंसे रहे सुबन्धु हमारे ॥
कारण दुख. का है “पाप” निगम यह् गावें |
यह मेध-पाल लख मनमयूर हरसवे ॥ ४॥ `
यदि कहो “दुःख नहिं मि, गंग न्दते से| `
बस पाप मूल ही हटे, गंग नहाने से |!
“प्र गंगासेवी कई बनाइस वाले । -
सो सो वर नहा के है चित्त के काते
क््योंकर बन्धन विन मन धोये कटजावे ।
यह मेघ-माल लख मनमयूर् हरसे ॥ ९ ॥ ..
भाया को पजा दश मान के करना ।? . . |
अन्धकार का कारण ति ने वरना ॥,
खो पुष्प गन्ध से भी ` सत्तम जगरा३ ।
उसको प्रतिमा बनि सके न कोटि उपाई ||
तानक, कबार, -हारदास यहा समभाव।
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