दिवाकर दिव्य ज्योति भाग 11 | Divakar divya jyoti Bhag 11

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Divakar divya jyoti Bhag 11  by मुनि प्रेमेन्दु - Muni Premendu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाप-मूल अभिभान ] | [ ও. कोई रस-स्वाद होत तो रसना इन्द्रिय से जाना जा सकता परन्तु उसमें किसी भी प्रकार का रस भी नही है । इसी प्रकार स्पर्श न होने के कारण उसे स्पशे निद्रय से भी भ्रहण नही किया जा सकता । ग्रागम से नहीं जाना जावे, (1 नेति नेतिः वेद सुनावे 'चौयमलः धरे इसी कां ध्यान, हमारा आतम तत्व महाच्‌ ॥। রা भाइयो! आत्मा का ज्ञान शास्त्रों से भी नही हो सकता । रमस्त्रौ मे श्रात्मा का स्वरूपं बतलाया गया है, उसके लक्षण चतलाये है, मगर यह सब तो झ्ब्दस्पर्शी वर्णन है। आत्मा की शअनुभूति-साक्षात्कार तो आगस नहीं करा सकते । यही कारण है कि वेद 'नेति-नेति! कह कर आत्मा का स्वरूप प्रदर्शित करने मे अपनी अ्समर्थ॑ता प्रकट करता है । अनुमान प्रभाण से आत्मा को जानने का प्रयास करे तो उससे भी उसकी सत्ता आदि का अस्पष्ठ बोध ही होता है । भादइयो | संसार में तीन तत्त्व हैं-(१) ज्ञाता (२) ज्ञान ओऔर (३) ज्ञेय । सबको जानने वाली भ्रात्मा को शाता कहते हैँ \ ज्ञाता जिसके हारा स्व-पर को जानता है, वह्‌ ज्ञान कटु- लाता है । प्रौ जड-चेतन रूप जीव, भ्रजीव श्रादि पदार्थ शेय कहलाते है । संसार मे नाना प्रकार के मत मर्तातर है । किसी ने ज्ञाता-आत्मा की सच्ा को न समक्त कर आत्मा का निषेध कर दिया है तो किसी ने उनसे चार कदम आगे बढ़ाकर ज्ञान, शेय




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