कोन्स्तान्तिन फ्रेदिन आग्नेय वर्ष भाग २ | Konstantin Fredin Aagney Varsh Bhaag 2

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Konstantin Fredin Aagney Varsh Bhaag 2  by योगेन्द्र नागपाल - Yogendra Nagpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खाई से अलग हो गया था, और बुढ़ापे में, जवानी की भांति आनंदमय भविष्य सहज ही सम्भव प्रतीत हो रहा था। वेशक , अतीत से कब का कुछ न बचा था, सिवाय घिसे हुए जूतों के, परन्तु अगर वह्‌ अतीत किसी चमत्कारवश फिर से जी उठता, तो मेश्कोव उसे अपना न सकता। उसने भविष्य के लिए जिस आशीर्वाद की याचना की थी और जिसे अब पा लिया था, उसका तकाज़ा यह था कि वह बीते दिनों को याद तक न करे। उसे एक नया व्यक्ति वनना ही नहीं था, उसे प्रतीत हो रहा था कि वह वैसा नया व्यक्ति बन गया है - उसने यह निर्णायक कदम इतनी श्रद्धा के साथ उठाया था कि स्वयं ही भाव-विभोर हो उठा था। घर पहुंचते ही मेश्कोव को एक नया समाचार मिला। वैसे तो यह समाचार उसके लिए अप्रत्याशित नहीं था। साथ ही इससे उसकी मुक्ति का क्षण और निकट आता था, जो अब उसके जीवन का एकमात्र ध्येय थी। इस समाचार से वह अत्यंत प्रसन्न था, क्योंकि इससे उसके सब वंधन कट रहे थे, पर साथ ही इससे उसके मन में हल्की सी उदासी भी छा गई थी, क्योंकि इसका अर्थ था कि वह अभी अपने निकट सम्बन्धियों को छोड़ भी न पाया था, उनसे यह कह तक न पाया था कि वह उन्हें छोड़कर जा रहा है और उन्हें न उसकी सलाह की , न उसकी हमदर्दी की ज़रा भी ज़रूरत रही थी। मेज़ पर इस्तरी किया मेजपोश बिछा हुआ था, जिसे खास तौर पर इस मौके के लिए संदूक से निकाला गया था। चारों ओर सब कुछ इसी मेजपोश की भांति सजल था और उमंग से वैसे ही फूला-फूला था , जैसे कलफ़ लगे मेज़पोश की उठ-उठ रही तहें। लीजा श्वेत वस्त्र पहने थी। उसका सिर मानों ऊंचा उठ गया था। उसका केश-परिधान फिर से हल्का-फुल्का हो गया था। पतली सी उंगली पर एक वार फिर अंगूठी रही थी-नई-नई पतली सी, ठीक वैसी ही जैसी अनातोली मिखाइलोविच की उंगली पर थी। लीज़ा सारी तैयारी कर चुकी थी-मेज़ के चारों ओर चार कुर्सियां उनकी प्रतीक्षा में रखी हुई थीं। वीत्या तारंगी रंग की नई रेशमी कमीज पहने খা, कमीज़ इस्तरी की हुई थी और उस पर अभी कोई दाग नहीं लगा था। अनातोली मिखाइलोविच ओज्नोविशिन ने गर्मियों का हल्का कोट पहन १५




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