साहित्य प्रारम्भिका | Sahitya Prarambhika

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Sahitya Prarambhika by रेणु - Renu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[६] सम्वत्‌ १५१२ वि० में पद्मनाभ ने कान्दडदे प्रवन्धः लिखा है। उसमें एक दुर्ग पर घेरा डालने का युद्ध वर्णन दै । रख शख की जानकारी, युद्ध की वेयारी तथा युद्ध के समय के, मनुष्यों के मनोभवो का उस पुस्तक में सफल चित्रण श्रा है | इस प्रकार का नवीन साहित्य प्रस्तुत करने वाली इस पुरितका का अच्छा प्रचार हुआ हैं | इपके अतिरिक्त हर सेबक ने 'सयण रदा रस; जयशेखर से त्रिभुवन दीपक्‌ प्रवन्धः हीरानन्द ने वस्तुपाल- तेजपाल रास > जनादन ने उपा दरण कमेण मन्त्री ने “सौदा হযে + किसी अह्नात कदि ने (वसन्त विलास ` ल्लावण्य समय ने ^ विमल प्रचन्ध › पुस्तकं লিজী ই जो खोज करने पर भय प्रकाश भे आई है। इनमें से कुछ पुस्तकें तो प्रकाशित भी हो चुकी है | सम्भव है, अनेकों लेखक (रचनाकार ) अभी अज्ञात के गभं मं लीन द्ोंगे। सम्भव है, उनमे कोई सत्त्वशाली लेखक भी छुपा पढ़ा दो ! यह तो गत्यक्ष ही है कि श्रभी अधिक अनु- संधान तथा थाग्रह पूर्ण अध्ययन की अत्यधिक आवश्यकता है । र ৫২ शः प्स ( सं, १५५५-६० से १६२०-२५ वि० तक ) नरसिंह मेहता की भाँति हा मीराबाइ भी एक भक्त के रूप में सारे भारत में प्रसिद्ध है । गुजरात के श्रष्ठ कवियों से तो उन की गणना होती ही आइ हैं । लगभग शछद्ंशाताच्दि पटले यह मान्यता थी कि गुजराती साहित्य का प्रारम्भ नरसिंह-सीरा से हुआ दे श्र उस युग से केवल भक्ति साहित्य ही लिखा जाता था। उस युग को भक्तियुग




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