बुनियादी शिक्षालय संगठन | Buniyadi Shikshlaya Sangathan

Buniyadi Shikshlaya Sangathan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बुनियादी ज्ञाला श्लौर सामाजिक जीवन ६ राश्नोका पालन करते हैं, पर अपने अन्दर एक भिन्‍न दुनिया बसाकर शाला के सामाजिक जीवन से दूर ही रहने लगते है । शाला के णान्त, नीरस, उदासीन बालक इसी प्रकार के होते है। इस प्रकार के वालक आगे चल- कर वहुत ही पक्की तथा दढ समाज-व्यवस्था के पोपक होते है। शालाओो में नियमो की बहुत ही श्रधिक कठोर व्यवस्था के कारण इस प्रकार के वालके वन जाते हु । श्रागे चलकर वे जनतत्रवादी ससृष्ट (णण) जीवन के विरुद्ध हो जाते है। लोकततन्न या जनतत्रवादी ससृष्ठ जीवन मे व्यक्तिगत भावनाओं एवं विचारों का आदर तथा विकास सभी के अधि- कारो की रक्षा तथा समानता का विचार करके किया जाता हैं। ऐसा जीवन उन्हें प्रिय नही होता । श्रतः हमारे भारत जैसे देश की जनतत्रवादी विचार-धारा के भनु- रूप शाला-सगठन तथा प्रबन्ध के लिए यह आवश्यक है कि सामाजिक तत्त्वो और व्यक्तिगत प्रवृत्तियों मे सुरुचिपूर्ण साम्य और सुधार स्थापित किया जाय । इससे आवश्यकता से अधिक व्यक्तिवाद सामाजिके प्रभाव से दवं जायगा तथा सामाजिक तत्तव व्यक्तिगत विदेपताग्रो को प्रभावित करके उनका दमन न कर सकेंगे । शिक्षा का प्रभाव सम्पूर्ण ससार पर देखा जा सकता है । प्रारम्भिक काल से मनुष्य कुछ-त-कुछ सीखता ही आया है । इसी सीखने से उसके जीवन में परिवर्तन हुए तथा वह सभ्यता के विभिन्न समयो मे शिक्षा शिखर पर पहुँच पाया है । मनुष्य के भ्राचार- के उद्देश्य और विचार, उसका समाज सभी शिक्षा के कारण घुनियादी शिक्षा. बदलते रहे हैं। अत यदि हम यह कहे कि शिक्षा के कारण ही उसके जीवन का विकास और उसकी उन्नति हुई है तो कोई अत्युक्ति न होगी । वास्तव में जीवन की उन्नति शिक्षा के आधार से ही हो सकती है। मनुष्य की क्या कहे ससार के अन्य सभी জীন জব ছীক্তা, নিকলী, चुहा, पक्षी, कौडे-मकोडे, सभी शिक्षा के कारण ही अपना श्रस्तित्त वनाए है । धोसले बनाना,




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