पन्ना धाय | Panna Dhay
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
117
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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२७ पन्ना धाय [ष्ड्क६ `
दृश्य र
स्थान--बनवीरका प्रासाद
शीतलसेनी--महत्वाकांकतादी उन्नतिकरा सोपान है, बनत्रीर ! `
राजमा्॑पर गोबर एकश्चितकम्तेहए् एक दिवस राजदासी दुगके `
भव्य वश्ालंकारोंको देखकर मेरे हृदयमें राजदासी बननेकी
आरांकांज्ा उठी । आकॉक्षाने प्रय्षकों जन्मदिया, अयज्नने सफलता...
को | राजदासी बनजानेपर मेंने प्रधान परिचारिका बननेका हृढ
संकल्प किया | और शीघ्रही मेरी यह महत्वाकांज्ञामी पूणाहुई। +
| मैंने द्रिद्रग हमें जन्म लेकरभी महाराणा प्रथ्वीराजके हृदयपर ২
शासन किया और सपक्नियोंकों डेघ्याग्निमें भस्म करतीहुई तुम्हें.
जन्म दिया | श्रव मेरे हृदयम केवल एकह आकांक्षा शेष है, ,
जिसकी पूर्तिकी अभिलाषाने मुझे राण।जीके साथ सहगमन न १ |
करनेदिया `
बनवीर--वह क्या है माँ ১
शीतल प्रेनी--बह है मेरे जीवनका चरमल्क्ष्य, राजमाताके `
महान पद्पर् अतिष्ठित होना | शीतल्लसेनीकी अभिलाषाए' उसके ;
.. पतिके जीबनमें जिसप्रकार सफलताका मुकुट प्राप्तकरतीरहीहैं, |
उसीग्रकार उसके पुत्र बनवीरके जीवनमेंभी प्राप्तकरेगी। मेरी
य झभिलाषा पूणद्वोगी, अवश्य पूण होगी, शीघ्र पूण होगी, ৮
| मेरे जीवनकात्मेंद्दी पूण द्ोगी ।
बनवीर--असम्भव है, मां ! जबसे राज्यमें अव्यवस्था बढ़ने-
.... लगीहै, मैंने कई बार तुम्हें राज्िके एकांतमें कई घड़ियोंतक -
.. अनेक बिचारधाराओंमें मग्न होते पायाहै | मैंने सहमकर धोरे-घीरे
.. तुम्हारे गृहमें अवेशकरके देखा कि दीपके मन्द अकाशमें तुम
` भित्तिपर एकठक देखतीहुई अद्ृष्के लेखोंकों समभनेका प्रयत्न न,
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