पन्ना धाय | Panna Dhay

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Panna Dhay by शिवप्रसाद 'चारण '-Shivprasad 'Charan'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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71814 4 (6 २७ पन्ना धाय [ष्ड्क६ ` दृश्य र स्थान--बनवीरका प्रासाद शीतलसेनी--महत्वाकांकतादी उन्नतिकरा सोपान है, बनत्रीर ! ` राजमा्॑पर गोबर एकश्चितकम्तेहए्‌ एक दिवस राजदासी दुगके ` भव्य वश्ालंकारोंको देखकर मेरे हृदयमें राजदासी बननेकी आरांकांज्ा उठी । आकॉक्षाने प्रय्षकों जन्मदिया, अयज्नने सफलता... को | राजदासी बनजानेपर मेंने प्रधान परिचारिका बननेका हृढ संकल्प किया | और शीघ्रही मेरी यह महत्वाकांज्ञामी पूणाहुई। + | मैंने द्रिद्रग हमें जन्म लेकरभी महाराणा प्रथ्वीराजके हृदयपर ২ शासन किया और सपक्नियोंकों डेघ्याग्निमें भस्म करतीहुई तुम्हें. जन्म दिया | श्रव मेरे हृदयम केवल एकह आकांक्षा शेष है, , जिसकी पूर्तिकी अभिलाषाने मुझे राण।जीके साथ सहगमन न १ | करनेदिया ` बनवीर--वह क्या है माँ ১ शीतल प्रेनी--बह है मेरे जीवनका चरमल्क्ष्य, राजमाताके ` महान पद्पर्‌ अतिष्ठित होना | शीतल्लसेनीकी अभिलाषाए' उसके ; .. पतिके जीबनमें जिसप्रकार सफलताका मुकुट प्राप्तकरतीरहीहैं, | उसीग्रकार उसके पुत्र बनवीरके जीवनमेंभी प्राप्तकरेगी। मेरी य झभिलाषा पूणद्वोगी, अवश्य पूण होगी, शीघ्र पूण होगी, ৮ | मेरे जीवनकात्मेंद्दी पूण द्ोगी । बनवीर--असम्भव है, मां ! जबसे राज्यमें अव्यवस्था बढ़ने- .... लगीहै, मैंने कई बार तुम्हें राज्िके एकांतमें कई घड़ियोंतक - .. अनेक बिचारधाराओंमें मग्न होते पायाहै | मैंने सहमकर धोरे-घीरे .. तुम्हारे गृहमें अवेशकरके देखा कि दीपके मन्द अकाशमें तुम ` भित्तिपर एकठक देखतीहुई अद्ृष्के लेखोंकों समभनेका प्रयत्न न,




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