पंडित सातवलेकर जीवन प्रदीप | Pandit Satavlekar Jivan Pradip
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
339
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रुतिशील शर्मा - Shrutisheel Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)নি
प्रगतिका प्रवाह ओर कर्त॑ग्यका स्मरण
नमो महतदभ्यो नमः शिक्ुभ्यो
नमो युवभ्यो नम आवटुभ्यः ।
ये ब्राह्यणा गामवधूतालिंगाः
चरन्ति तेभ्यः दिवमस्तु राम् ॥ ( भागवत ५।१६।२३ )
कोलगाँव (जि, रतनागिरी )के सात्विक सद्धं घरानेका साववछेकर नाम कैसे
कौर कंग्र पद गया, यद एक गृद ही दे ॥ दासोदरपत भौर लट्ष्मीबाईक जितने भी
बच्चे हुए, सभी श्ल्पवयी ही हुए । सभी अकाछ झत्युके प्रास बन जाते थे 1 खी
जनन््मकी पूर्णता माृखमें क्षौर मात्स्वकी पूर्णेता बाढसंगोपनमें ही! होती है । इस
झभमिलापाकी तृप्तिके लिए छश्ष्मी बाईने नरसोयावाढीके भगवान् दृत्तान्नेयकी सनौती
सनाई कि यदि मेरा लडका जीवित ददा तो दे देव ै उसका उपनयन तेरे ही चरणों्में
আক কী |? आगे छूदका होनेपर मानों मनौतीकी स्खतिके लिए और बच्चा भी
জাম चलकर सेस्कारी बने इस कमिलापास उसका भाम श्री-पाद ” रखा ।
परिस्थितिकी प्रयोगशाढामें से प्रथम मलुष्यका झाकार बनता है, भौर इधी
क्राकार-निर्माणऊ दौरानमें उस मनुष्यमें नई नई शक्तियां भी उत्पन्न द्वोती जाती हैं
भोर प्क दिन ऐसा आता हे कि इन इक्तियोका মঙ্তারা লক্ষ অধ ঘহিহ্যিলিষ্চা
खिलौना मनुष्य परिस्थितिकों ही अपने ह्ार्थोका स्विलीमा बनाकर उसे लेसा चाहे
वैसा घढ़ सकता है भौर अपने, समाजके, राष्ट्रके भौर छोर सेसारकें इतिट्वासला
भी यदद निर्माण कर सकता है। इसीलिए कण/ैक|---
'्रूचायत्त कुन्दे उन्म मदायत्तं व पौंसप
(* मेरा हस्म होना भाग्यह अधीन था कौर पुरपाये करना मेरे काधीन है )
User Reviews
No Reviews | Add Yours...