षट्खंडागम | Shatkhandagam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shatkhandagam  by पं सुमितबाई - Pt Sumitbai

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं सुमितबाई - Pt Sumitbai

Add Infomation AboutPt Sumitbai

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रस्तावना [३ ই देवियां अपने स्यानको चली गई । मन्त्र-साघधनाकी सफलतासे प्रसन्न होकर वे आ. धरसेनके पास पहुंचे और उनके पाद-बन्दना करके विद्या-सिद्धि-सम्बन्धी समस्त बृत्तांत निवेदन किया । आ.धरसेन अपने अभिप्रायकी सिद्धि और समागत साधुओंकी योग्यताकों देखकर बहुत प्रसन हुए और “ बहुत अच्छा ! कष्ट कर उन्होंने शुभ तिथि, झुभ नक्षत्र और शुभ वारमें ग्रन्थका पढ़ाना प्रारम्भ किया | इस प्रकार ऋमसे ब्यास्यान करते हुए आ. धरसेनने आघाढ़ झुका एकादशीके पूर्वाह काले म्न्य समाप्त किया । विनय-पूर्वक इन दोनों साधुओंने गुरुस ग्रन्थका अध्ययन सम्पन्न किया है, यह जानकर भूतजातिके व्यन्तर देवोंनें उन दोनोंमेंस एककी पुष्पातढीस शंख, तुय आदि बादिश्नोको बजते हुए पूजा की । उसे देखकर धरसेनाचार्यन उसका नाम * भूतबलि ! रकखा । तथा दूसंर साधुकी अस्त-व्यस्त स्थित दन्त-पंक्तिकों उखाड़ कर समीकृत करके उनकी भी भूतोंने बड़े समारोहस पूजा की । यह देखकर घरसनाचार्यनें उनका नाम ‹ पुष्पदन्त ' सखा | अपनी मृत्युकों अति सन्निकट जानकर, इन्हें मेरे वियोगस संकृश न हो यह सोचकर और वर्षाकाल समीप देखकर धरसेनाचार्यने उन्हें उसी दिन अपने स्थानकों वापिस जानेका आदिश दिया। यद्यपि वे दोनोंही साधु गुरुके चरणोंके सानिध्यमें कुछ अधिक समयतक, रहना चाहते ये, तथापि ' गुरुके वचनोंका उछंधन नहीं करना चाहिए ' ऐसा विचार कर वे उसी दिन वहांस चछ दिये और अंकरछेश्वर ( गुजरात ) में आकर उन्होंने वर्षाकाछ बिताया। वर्षकाल व्यतीतकर पुष्पदन्त आचार्य तो अपने भानज जिनपालित के साथ बनवास देशको चले गय और भूतबलि भट्टारक भी दमि देशको चदे गये । | तदनतर पुष्पदन्त आचायने जिनपालितकरो दीक्षा देकर, गुणस्थानादि वीक्त-प्ररूपणा-गमित सत्मरूपणाके सूर्जोकी रचना की ओौर जिनपाङ्तिक्रो पाकर उन्दं भूतबछि आचार्यके पास भजा । उन्होंने जिनपाछितिक पास्त वीसग्ररूपणा-गमित सप्ररूपणाक सूत्र देख और उन्हींस यह जानकर कि पुष्पदन्त आचार्य अस्पायु हैं, अतण्व महाकमंप्रकृतिप्राशतका विच्छेद न हो जाय, यह विचार कर भूतबलिने द्वव्यप्रमाणानुगममको आदि लेकर आगेके प्रन्यकी रचना की । जब प्रन्थ-रचना पुस्तकारूढ हो चुकी तब अपेष्ठ झुका पंचमीके दिन भूतबलि आचार्यने चतुर्विध संघके साथ बड़े समारोहसे उस ग्रन्थकी पूजा की । तभीस यह तिथि श्रुतपंचमीके नामसे प्रसिद्ध हुईं। और इस दिन आज तक जैन लोग बराबर श्रुत-पूजन करते हुए चले आ रहे हैं' | इसके पथात्‌ भूतबलिने अपने द्वारा रचे हुए इस पुस्तकारूढ़ पट्खण्डरूप आगमको जिनपालितके हाथ आचार्य पुष्यदन्तके पास भेजा । वे इस पद्छण्डागमको देखकर और अपनेद्वारा प्रारम्भ किये कार्यकों भकीभांति सम्पन्न हुआ जानकर अलनन्‍्त प्रसन्न हुए और उन्होंन भी इस सिद्धान्त भ्रन्थकी चतुर्विध संघके साथ पूजा की | সপ শপ १ ज्योष्ठसितपक्षपञ्चम्यां चातुवंध्यंसंभसमवेत: । तत्पुस्तकोपकरण ब्यंधात्‌ क्रियापूर्वक ঘুতাস্‌ 103২1) श्ुतपअुचसीति तेन प्रत्याति तिथिरयं परामाप । अद्यापि ग्रेन तस्यां श्रुतपूर्जा कुर्वते जना: ॥ १४४ ॥ ( इन्दरनन्दि श्रुतावतार }




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now