सम्पूर्ण गांधी वाड्मय भाग - 2 | Sampurn Gandhi Vadmay Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दक्षिण आफिकावासी श्िटिश भारतीयोंकी कष्ट-गाथा २ লতা भारतीय दुष्टिसे दक्षिण आफ्रिकाका सबसे महत्त्वपूर्ण प्रदेश नेटाल ই) उसमें मूल निवासियोंकी संख्या लगभग चार लाख, यूरोपीयोंकी रूगभग पचास हजार और भारतीयोंकी रूगभग इक्कावन हजार हैं। भारतीयोंमें लगभग १६,००० इस समय गिरमिटिया हैं, लगभग ३०,००० ऐसे हैँ, जो किसी समय गिरमिटिया थे और इकरारनामेसे मुक्त होनेके वाद स्वतंत्र रूपसे वहाँ बस गये हैं। रूगभग ५,००० लोग व्यापारी समाजके हैं। व्यापारी समाजके लोग अपने ख्चेंसे वहाँ आये थे। उनमें से कुछ अपने साथ पूंजी भी लाये थे। गिरमिटिया भारतीय मद्रास और कलकत्तेकी मजदूर जमातसे लाये गये हैं। उनकी संख्या लगभग वरावर हूँ। मद्राससे आये हुए छोग सावारणत: तमिलभापषी हैं, कलकत्तेसे आये हुए हिन्दी बोलते हैं। इनमें ज्यादातर लोग हिन्दू हैं; परन्तु मुसलमानोंकी संख्या भी अच्छी-खासी हँ। वारीकीसे देखा जाये तो ये जाति-वन्धन नहीं मानते। इकरारनामेसे मुक्त हो जानेपर ये वागवानी या घूम-घृमकर सब्जियाँ वेचनेका रोजगार करते हैं और दो-तीन पौंड महीना कमा लेते हैं। कुछ लोग छोटी-मोटी दूकानें खोल लेते हैं। परल्तु दूकानदारी सचमुच तो उन पाँच हजार भारतीयोंके ही हाथमें हैँ, जो मुख्यतः वम्बई प्रदेशके मुसलमान समाजसे आये हूँ। इनमें से कुछका कारोबार अच्छा हं 1 अनेक वड़-वड़ मृस्वामी ह, भौर दो तो अव जहाज-माल्िकि भी वन गये हैं। एकके पास भापसे चलनेवाली तेल-घानी भी है। ये छोग या तो सूरतके हैं, या वम्बईके आसपासके, या पोरवन्दरके। सूरतसे भाये हुए अनेक व्यापारी अपने परिवारोके साय उवंनमें वसे हँ! इनमें से ज्यादातर लोग अमनी भाषाएँ लिखने-पढ़नेका ज्ञान रखते हैं। यह ज्ञान दूसरे लोग जितना समझते हैं उससे ज्यादा है। ऐसे लिखे-पढ़े छोगोंमें सरकारी सहायतासे आये हुए भारतीय भी झामिल हैं। मेने नेंटाठकी विधानसभा और विधानपरिपदके संदस्योंके नाम जो खुली कचिटूठी लिखी थी उसका निम्नलिखित मं मैं यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ। इसका उद्देव्य यह दिखाना हैं -कि इस उपनिवेशका साधारण यूरोपीय समाज भारतीयोंके साय कंसा व्यवहार करता हैं: १. मूल पाठके लिए देखिए खण्ड १, पृष्ठ १७२ से १६६।




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