चामुण्डराय वैभव | Chamundaray Vaibhav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
83
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)का गौरव बढ़ाया है । इस अद्वितीय साहस एवं अटल राजनिष्ठा से प्रसन्न होकर
इस राजसभा मे उपस्थित आचार्य, गुरुजन एवं समस्त प्रजा दैः सम्मुख हम आपको
“वीर-मार्तण्ड , रणरंग-सिंह', समर -धुरंधर', वैरिकुलकालदंड*, “भुजविक्रम',
एवं मटामर' उपाधियो से अलंकृत करते है ।
इस सम्मान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए चामुण्डय्या ने कहा -
“नै धन्य हो गया प्रभु. धन्य हो गया । मेरी विजय का कारण आचार्य अजित
सेन जी का आशीर्वाद ही है । आपके प्रोत्साहन एवं गौरव उसके पोषक है । प्रजा
के उत्साह ने उसे कार्यान्वित किया ह । इसमे मेरा कुष्ठ भी नहीं है प्रभु ।
विवेक मे, राजनीति-कुशलता मे, युद्ध-चातुर्य मे ओर जिन भक्ति मे आपके
समान कोई भी नहीं टै चामुण्डय्या ।
“यह सब आपके, गुरुजन के प्रजा के अभिमान के वचन हैं प्रभु | पूज्य
अजितसेन जी जैसे आचार्य, आप जैसे प्रभु, एवं गंगवाड की मुग्ध प्रजा को पाकर
मेरा जीवन धन्य हो गया है प्रमु । चामुण्डय्या ने राजमल्ल एवं राजसभा को आदरपूर्वक
नमस्कार करके आभार प्रकट किया ।
रणरंग मे विजय प्राप्त कर, राजसभा मे सम्मानित होकर आए चामुण्डय्या
के स्वागत के लिये पत्नी अजिता देवी, माता काललादेवी, पुत्र जिनदेवण पूरे परिवार
के साथ सन्नद्ध खड़े थे । अजितादेवी ने आरती उतारकर पति का स्वागत
किया । चामुण्डय्या ने पत्नी को प्रेम से देखा तथा माता के चरण स्पर्श करके
प्रणाम किया ।
सब कुशल हैन अम्मा?
हां कुमार, सब कुशल है । युद्ध मे कोई बाधा तो नहीं हुई ?
नहीं अम्मा । आपके आशीर्वाद से सब कुछ बड़ी सरल रीति से हुआ ।*
“पुत्र यह सब नेमिनाथ तीर्थकर का ही प्रभाव एवं पूज्य अजितादेवी जी के
आशीर्वदकाफल है ।'
यह सत्य है अम्मा 1
सुना है कि राजसभा में तुम्हारा सम्मान किया गया ।*
हो अम्मा, प्रमु का मुञ्पर अटल प्रेम है । सबके सम्मुख गुणगान करने
पर ही उनको तृप्ति मिलती है। पूज्य अजित सेनाचार्ये के सम्मुख प्रभु ने अनेक
उपाधिरयो प्रदान करके अतुल संपत्ति भी भेट मे भेजी है । उस सम्पत्ति का उपयोग
दानधर्मादि कार्य के लिये करो अम्मा ।“
ऐसा ही होगा पुत्र ।
माता-पुत्र के वार्तालाप से पति की विजयगाथा सुनकर अजिता देवी आत्म-
गौरव से पुलकित हो उठी ।
14 उणमुण्डशय भव
User Reviews
No Reviews | Add Yours...