चामुण्डराय वैभव | Chamundaray Vaibhav

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Chamundaray Vaibhav by जीवंधर कुमार - Jivandhar Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का गौरव बढ़ाया है । इस अद्वितीय साहस एवं अटल राजनिष्ठा से प्रसन्न होकर इस राजसभा मे उपस्थित आचार्य, गुरुजन एवं समस्त प्रजा दैः सम्मुख हम आपको “वीर-मार्तण्ड , रणरंग-सिंह', समर -धुरंधर', वैरिकुलकालदंड*, “भुजविक्रम', एवं मटामर' उपाधियो से अलंकृत करते है । इस सम्मान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए चामुण्डय्या ने कहा - “नै धन्य हो गया प्रभु. धन्य हो गया । मेरी विजय का कारण आचार्य अजित सेन जी का आशीर्वाद ही है । आपके प्रोत्साहन एवं गौरव उसके पोषक है । प्रजा के उत्साह ने उसे कार्यान्वित किया ह । इसमे मेरा कुष्ठ भी नहीं है प्रभु । विवेक मे, राजनीति-कुशलता मे, युद्ध-चातुर्य मे ओर जिन भक्ति मे आपके समान कोई भी नहीं टै चामुण्डय्या । “यह सब आपके, गुरुजन के प्रजा के अभिमान के वचन हैं प्रभु | पूज्य अजितसेन जी जैसे आचार्य, आप जैसे प्रभु, एवं गंगवाड की मुग्ध प्रजा को पाकर मेरा जीवन धन्य हो गया है प्रमु । चामुण्डय्या ने राजमल्ल एवं राजसभा को आदरपूर्वक नमस्कार करके आभार प्रकट किया । रणरंग मे विजय प्राप्त कर, राजसभा मे सम्मानित होकर आए चामुण्डय्या के स्वागत के लिये पत्नी अजिता देवी, माता काललादेवी, पुत्र जिनदेवण पूरे परिवार के साथ सन्नद्ध खड़े थे । अजितादेवी ने आरती उतारकर पति का स्वागत किया । चामुण्डय्या ने पत्नी को प्रेम से देखा तथा माता के चरण स्पर्श करके प्रणाम किया । सब कुशल हैन अम्मा? हां कुमार, सब कुशल है । युद्ध मे कोई बाधा तो नहीं हुई ? नहीं अम्मा । आपके आशीर्वाद से सब कुछ बड़ी सरल रीति से हुआ ।* “पुत्र यह सब नेमिनाथ तीर्थकर का ही प्रभाव एवं पूज्य अजितादेवी जी के आशीर्वदकाफल है ।' यह सत्य है अम्मा 1 सुना है कि राजसभा में तुम्हारा सम्मान किया गया ।* हो अम्मा, प्रमु का मुञ्पर अटल प्रेम है । सबके सम्मुख गुणगान करने पर ही उनको तृप्ति मिलती है। पूज्य अजित सेनाचार्ये के सम्मुख प्रभु ने अनेक उपाधिरयो प्रदान करके अतुल संपत्ति भी भेट मे भेजी है । उस सम्पत्ति का उपयोग दानधर्मादि कार्य के लिये करो अम्मा ।“ ऐसा ही होगा पुत्र । माता-पुत्र के वार्तालाप से पति की विजयगाथा सुनकर अजिता देवी आत्म- गौरव से पुलकित हो उठी । 14 उणमुण्डशय भव




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