युधिष्ठिरविजया | Yudhisthiravijaya Of Mahakavi Sri Vasudeva Granthamala-152

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Yudhisthiravijaya Of Mahakavi Sri Vasudeva Granthamala-152 by व्रजेशचन्द्र श्रीवास्तव - Vrajeshchandra Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१८) मे अषटमरमीय वध्य সঙালে करदेन पतेद्‌ शम पाइचर्य छी वातं नही । सस्वृत-्सादित्य में वैसे अन्य प्रसिद बवियों में प्राय यही देसा गया है. किये अत्यल्प क्या को कोरो कल्पना का बाना पहुनावर चमत्वारी तौ बना देने है घर उससे पाठ्वा का कोई विशेध छात्र नहीं होता | सुपिष्ठिर-विनम मद्गावाब्य की रचना कवि ते व्यावहारिक पद्ष को ध्यान में रखकर वी है। उसने 'जगतु के उपहास के लिये नहीं बल्कि जगतु के उपकार के लिये दस काब्य बी रचना की है॥ अत इसमें ववि ने अपने पास्वित्य-प्रदर्शन वे साय-साय নাতনী लाभ को भी ध्यान में रखा है । ुधिष्टिस-बिजय' महाकाब्य के अनुशीलन से यह पता चलता है. कि कवि वासुदेव अनेक विषयो के ज्ञाता हैं। वे देद, पुराण, स्मृति, राजनीति, धम्मंशास्त्र, जर्वशासत्र, वामशास्त्र, युद्धनशास्तत्र एवं दर्शन-शा्तराद में भी समानरूप से पैठ रखते हैं। महाभारत के साथ-साथ उनका पोयणिक ज्ञान भी अत्यन्त गइन है। प्ग्य के विस्तार वे भय से उन्होंने जपने इस ज्ञान वो पाठकों के सम्पु्र सवेत- पमे ही प्रस्तुत करने का सदैव प्रयास किया है। पवे काइवास मे कविने भीम के मुप्त से नरसिहावतार, शरभावतार वी जोर सेत क्रिया ट-- 'मुज्चति नैष भवस्मु प्रुद्धेप्वेत च यादवर्षभवत्सु । मौज्ल्सिदावार दरि टि शरभो हर स्वमिदाकारभू ॥\ ८~५५॥1 कबि अपने पौराणिक ज्ञान से पाठकों को मर्दैंद सक्षिप्त भाषा मे हो परिचित कटान ह । भगवान्‌ विष्णूने पुराणो के अनुसार १० अवतार धारण किये है जिनका वर्णंत कवि ने सक्षेप मे हरे आइवास में, युधिप्ठिए की अग्रथपुजा-शत्रा के समाधान के रुप मे, भीग्मपितामह के मुख से करवाया है; कवि बासुदेव से क्रमश मत्स्याववार (३ ४१), कच्छपावदार (३ ४२), सूकरावतार (३ ४३ ), नरसिहावदार ( ३ ४४ ), बामनावतार ( ३ ४५ ), भागंवावतार (३ ४६ ), रामावतार ( ३ ४७ ), वजरामावतार ( ३ ४८ ) कृष्णावतार (३ ४९ ) एवं कम्कि-अवठार ( ३ ५० ) की सकारण एव सप्रयोजन व्याख्या प्रस्तुत की है जो उनके अगाध-पोराणिक-ज्ञान को ज्वलन्त उदाहरण टै । क्वि वासुदेव वेद एव स्मृति-मार्ग के अतुपायी है अल यत्र-तव वे अपनी बात की पुष्टि के लिये मनुस्मृति को ही उद॒हृत करते हैं। महाराज पाण्डु सन्दान के अभाव से वयो दु ख्वी रहते थे ? इसका उत्तर वे मनुस्मृति के एक वाव चो उद्‌भ्रत करके ই ই-_ विफला नाम रगा जानिमदृत्वा पिनानहानायनरदामर 1 १ १६ ॥ इसी प्रकर राजा पाण्डु की भसृत्यु पर रानी माद्दी का सती हो जाना भी स्मृति-मोर्ग কা अनुमरण ह है । स्मृदि का कट्ना है कि जो पतिता अपने पति




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