आदर्श-हिंदी-संस्कृत-कोष: | Adarsa-Hindi-Sanskrt-Kosh

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Adarsa-Hindi-Sanskrt-Kosh  by डॉ. रामसरूप 'रसिकेश' - Dr. Ramsarup Rasikesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १८) वासुदेव द्विवेदी शाख ( सावभौम सष्टरत प्रचर कायलिय, वाराणन्ी } प्रो० रामसरूप शारदी दाग दन्ति एव्‌ सम्पादित्त ^ काददा इन्दा सस्रत बश के द्वितीय ब्सस्क्रण वो देखकर दवादिक प्रसहषता हुई । दिन्दी-सस्कृत बोश क क्षत्र में यदी एव ऐसा चोश था जो अपार, शब्दमख्या एद उपयोगिता कौ दृष्टि से सर्वोत्तम था और इसीलिये इसका अमव बहुत दिनों तक सठक रहा था । सेफडों विशाठमों को तो मैंने दी इस कोड वो सूचना दी होगी वर तब उन्दें यद्द मालप हो नाता था कि यदे कोश सम्प्रति उप्चच्द नहों है तो दे हार्दिक दुख प्रकट करते ये और चाइशे थे कि यद कोश डिसी प्रकार उन्हें उपल््ध हो जाय । खात माननीय शाप्लीजी ने इसका पुन सम्पादन तथा चौएम्बा विधामवन न श्तका प्रदाशन कर नो भर्मस्य লী কী আবাহনী की पूर्ति की है इपक लिये ये दोनों डार्दिफ धन्यवाद वे पाप हैं । यद्द बहने थी आवदयकता नहीं कि दिन्दौ सस्‍्कृत कोश का सम्पादन सस्वृत दिन्‍्दी कोश के सम्पदन की अपेशा पक कठिन काये है। वार0 कि आत की हिन्दी में अरबी, पारसी एवं अग्रेती के भी बदुत से शब्द प्रचलित दो गये हैं । इसके अतिरिक्त देशी तया लोक मापाओं के शब्दों दी भी साया कुछ फ्म नहीं है। फ़ारसी, अरदी नथा अग्रेती के प्रारिमाषिक शदो का पक विकराल अण्डार अलग ही है। ध्न न्नं के पर्यायवाचं शब्द पुरानी सत्कृत मे नद्यै भिन्ते जत जनम लिये नये सस्दृत शर्स्दों का निर्माण 1 रना पड़ता हैं जो साधारण विद्वान कमव नदी टै । यही स्थिति उत समी शब्दकांशों में पाई जातो है जो अग्रेती, बंगला, मरादौ, गजरातां, तमिल एवं तैल्गू आदि भाषाओं से समन्‍्कृत में रिफे गये हैं । मेरे कार्यास्य में छेसे अनेए बोद हैं । इन शब्दकोशों में भी पर्याप्त सख्या में नये सस्कृत शब्द बनायें गये हैं) अब कठिनाई यह है कि विभित्र कोशों में जो नये सच्द क्लाये गये हैं उनमें एकरूएता नहीं है। छेफकों ने अपने अपने शान एवं रचि के अनुरूप शब्दों का निर्माण फ्िया रै} िन्दौकिन्द कोशों में उत्तर एव दक्षिण सारत के प्रदेशिकठा का भी प्रभव বলেছি ছীল্য £) টাদী হিল মি নাল सम्हत झर्म्दो से अन्य मताओं मे वत्तद झब्दों छ सतत अयथो का सदत वोच पेना भा बराना वक्ता एवं श्लोता दोनों के लिये असभव॒ या किन हांता है। सस्कृत के झाउुनिक लेखकों प्व वक्ताओं व लिये यइ एय समस्या है निसका समाबान होता एम अवड्यक है । प्रस्तुत कोश में शौ््रांनी ने उक्त कठिनाइयों के निवाएण के लिये थ प्रयप्ति प्रथन उिया दे जो उनकी भूमिका पदने से अच्ठो तरद्द जिदित होता है। यदि कोई सस्था या शब्द निमाण समिति विभिन्र कोश्चवारों द्वारा नवनिर्भित संस्कत झस्दों के अखिन मारनीय विद्वत्समान की इृद्धि से सर्वसामान्य और सर्वत्र समानरूप स प्रचलित करने की यौहना बनाये तो उससे सफलता में इस बोदश से बड़ी सहायता प्रिल सम्त्री है। परन्धु जब तक्क दस प्रकार कौ काश योचनां नईीं बनती, ओर जिसके बनने की सभावना भा अन्त ही दीखती है, तब तक श्सी काश को आदर्श यो मारा जा सकता है। इस इब्टि मे इसदा ' आदर दिन्दीसस्‍्कत कोश” नाम मैं सर्वक यथा घानता हूँ + मम्दृत वा अत्येक विद्वन एर्द विद्यार्थी इस कोश की एक प्रति अपने पास रखकर और হলই सहायता लेबर संस्कृत बोलने एवं लियडे में अवाधगति से आगे बद्र सकता है, इसर्मे कोर अन्देद नहीं! वप




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