संक्षिप्त तीसरी पंचवर्षीय योजना | Sankshipt Teesari Panchvarshiya Yojna
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)13
शामिल है, निश्चित और अग्रिम योजना बताने की आवश्यकता है। विकास के दीर्घकालीन
दृष्टिकोण से नीति और कार्यक्रम निर्धारित करने और प्रगति को झांकने में लाभ होता है।
वास्तविक उपलब्धि और अनुभव के आधार पर स्वय इस“^दुष्टिकोण का भी समय-समय पर
पुनर्मूल्याकन करने की आवश्यकता है ।
3. पहली गोजना में 1951 से 1981 त्तक के ततोस वर्षो में आयिक विकास का
भविष्य-चित्र आकड़ों में प्रस्तुत किया गया था । पहली योजना से जो स्थितिया और घारणाए
एक प्रकार से उत्तराधिकार के रूप मे चली झा रही हें, उनको दूसरी योजना में श्रवं-व्यवस्या
की वास्तविक उपलब्धियों की रोशनी में समीक्षा की गयी । यह सुझाया गया कि 1950-51
की तुलना मे 1967-68 तक राष्ट्रीय आय और 1973-74 तक प्रतिव्यक्ति श्राय दुगृनी
हो जाएगी । राष्ट्रीय आय प्रतिवर्ष लगभग 6 प्रत्तिशत भी बढती रहे, तब भी, जनसख्या-
वृद्धि और उसके भावी रुख को देखते हुए, पाचवी योजना के मध्य तक 1950 51 की प्रति-
व्यक्ति आय को द्ुुगुना करने का दूसरी योजना मे व्यक्त इरादा पूरा करना - कठित होगा।
1971 और 1976 के लिए इस समय जो अस्थायी अनुमान है, उनके आधार पर 1961-
16 के वीच जनसब्या में कुल वृद्धि 18 करोड 70 लाख हो सकती है। मह अनुमान है कि
जनसस्या मे इस वृद्धि के साथ-साथ इसी अवधि में श्रमिक वर्ग की सख्या लगभग 7 करोड़
बढ़ सकती है | जनमझख्या में इस वृद्धि को देखते हुए और बेरोजगारी तथा अल्प-उत्पादकता
की समस्या को हल करने को जरूरत समझते हुए यह आवश्यक है कि अथे-व्यवस्था का
सथासम्भव विस्तार किया जाएं ।
১:
दीघेकालीन विकास का मार्ग-निर्धारण
4. श्रगली तीन योजवाझों की अवधि में यह अ्रत्यावश्यक है कि आधिक विकास की
समस्त सम्मावनाओ का पूर्ण और प्रभावशाली ढंग से छाभ उठाया जाए । इसके लिए यह
आवश्यक है कि भ्राथिक विकास की ऐसी नीति पर चला जाए, जिससे प्र्थ-व्यवस्था का तेजी
से विस्तार हो और वह यथासम्भव अल्पावधि में आत्मनिर्भर और ग्रात्मवाहक हो जाए ।
तीसरी और, उसके बद झ्रानेवाली योजनाओं में जी नोति रखी गयी है, उसमें कृषि क्रौर
उद्योग, श्राथिक और सामाजिक विकास, राष्ट्रीय और प्रादेशिक विकास, और घरेलू प्या
बाह्य साधनों की परस्पर-निर्भरता पर जोर दिया गया है ।
5 कृषि और देहाती श्र्य-व्यदस्था--देहात मे जनशविति और स्थानीय साधनों के
अधिकाधिक उपयोग के आधार पर कृषि का विकास देश की झीकश्न उन्नति की कुजी है।
पर्याप्त सिंचाई, उ्वरको के प्रयोग, अच्छे बीज और उपकरणों के इस्तेमाल, किसानों को खेती
के सुघरे तरीकों की शिक्षा, भू-धारण नियमों में सुधार और सहकारी ढंग पर कृषि श्रथे-
व्यवस्था के विकास से अपेक्षाकृत कम समय में उत्पादन का स्तर काफी ऊचा किया जा
सकता है । इस झवधि में जो रुक्ष्य प्राप्त करने हे, वे हे; विविध और कुशल कृषि-प्रणाली
का विकास, जिसमें पशुपालन, दुग्ध-उत्पादन, मांस-मछली का उत्पादन, मुर्गीपालन श्रादि
User Reviews
No Reviews | Add Yours...