भारती भूषण | Bharati-bhusan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) घाघर ग्रंथो की हस्तङिखित भरतियों को एकः स्थान पर एकजित करले एवं महत्वपूर्ण ग्रंथों के प्रकाशन का कार्य आरंभ कर दे। अनुमान तो यह किया जाता है कि इस समय जितने प्रंथों का पता है उसके दुशुने ग्रंथ उपेत्ता और अलावधानी के कारण नष्ट हो चुके हँ । इख समय के कुछ काव्य-शास्त्र के विद्वानों का कहना है कि इन ग्रंथों के एकत्रित करने में जो परिश्रम ओर व्यय होगा उससे हिदी-साहित्य का उपेक्ताकृत उपकार कम होगा क्योंकि एक तो इन ग्रंथों मे मौलिकता बहुत कम है दूसरे विषय के प्रतिपादन में कवियों ने सामाजिक सदाचार को उन्नति की शरोर अग्रसर न कर्के उसकी निर्द॑यता-पू्ैक इत्था की है । यह आज्षेप अलंकारों के उदाहरणों को प्रकट करनेवाले छुंदों के प्रति है। छक्षणों के संबंध मं भी इन विद्वानों का कहना है कि लक्षण निर्धारित करने में सूद्मदर्शिता का परिचय बहुत कम दिया गया है और अधिकतर छत्षण अपूर्ण, भ्रामक और अशुद्ध हैं, यह भी कहा गया है कि यदि इन ग्रंथों के सहारे कोई अलं- कारों का शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करना चाहे तो उसे सर्वेथा निराश होना पड़ेगा। यदि ये सभी आज्तेप ठीक हों--यद्यपि इनके, ठीक माने जाने में बहुत कुछ खंदेह हे--तो भी काव्य के इतिहास मे हमारे आचार्यो का मानसिक विकास कैसा था, इसका पता तो ये अ्रंथ दंगे ही। ऐसी दशा में इनका संस्र अलुपयुक्त नहीं कहा जासकता है। हिंदी कविता के पुराने आचाये विद्वान थे अथवा सूखे इसका निश्चय तभी हो सकता हे जब उनके ग्रंथ उपलब्ध हों । इतिहास का काम तो तथ्य का समय के अनुसार वर्णन करना है, फिर चाहे वह हमारे आजकल के विचारों के अनुकूल हो अथवा घतिकूछ। हिंदी के जो पुराने छरंकार-खंवं धी ग्रंथ मेरे देखने में आए है उनके पाठ से तो मेरा




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