गृहलक्ष्मी | Grihalaxmi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
50
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११ दशन] लीला | ७९8
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लीला--बडी तो में हो गई हू । बाब जी तो उस दिन कद
रहे थे, “लोला अब बडी हा गई है ।”
पार्वती--ओऔर भी वड हो जा, तव सब बात समभने लगेगी
त्यत् मेरीतरह पटामं पानी सचा करना, ५हस्थीके काम
धंध करना । श्व क्रेगीतो तुभे दुःख होगा ।
लीला- क्या दइसीसे दुख हाता है ? ता तुमको भी इस काम
से दुख होता होगा ?
पावेती--नहीं ।
लीला--फिर सुभं दुःख क््ये होगा
पाचती-- दुःख चाहे न हो, पर पानी लग लग के तू बीमार
हो जायगी ।
इससे एहिले लीला बीमार हो गयी थी, सो बीमारी का हाल
वह अच्छी तरह से जानती थी। अब माता की बात सुन कर
उसकी आँखे डबडबा आयीं। उसने रोनी सी होकर कहा,--“तब
तुमको भी तो पानी लग लग के बीमारी हो जायगी!”!।
माता ने उसके आँसू पाँछु कर कहा, “नहीं, इससे में बीमार
नहीं पड़ गी 1
माता की बात सन कर कन्या को अचम्भा हुआ । उसने पूछा
“फिर मे कंसे बीमार दा जाङगी ?
पार्वती इस “केसे” का उत्तर केसे देती ? तब मा बेटी दोनों
जल सींचने लगीँ। माता बडी गगरी मे पास के ताल से पानी
भर लाती और लोकी, कॉहड़े, शाकर भाजी आदि के पेड़ों में पानी
डालती रही । लीला লী माता की देखा देखी एक लोटे में उसी
भाँति पानी भर भर कर पेड़ों को खींचती रही ।
इस भाँति खीला इतनी छोटी ही अवस्था से माता का हाथ
बेरा लेने की शिक्षा पाने लगी । वह दूसरी लड़कियों को भाँति
भूठे खेल कभी नहीं खेलती । माता के साथ साथ रह कर घर के
सच्चे खेल खेलने ही उसे अधिक रुचते थे। संध्या के समय
चंद्रमा की चॉदनी में बेठ कर जब माता चरखे में सूत कातती
तब कन्या उसके पास बेठ कर कपास सँचार देती थी । कुछ और
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