हिन्दी नवजीवन | Hindi Navajivan

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Hindi Navajivan by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ हिग्दी-नयज्ी वन সণ পপ পপ ऋण थक সপ क আদি = न~~ পি ডু রি হি ০০৫৭ न णि क १ 3 ` 8 শি ~~ ~~ ~~~ ~~~ ০০০০০ ९ >> नै ধু ४: ৪ ক 0 | देन्दा-नवजारन 1 रविवार, भावो वदी १०, संबत्‌ १६८१ नय 2) बोल्शेविज्म या संयम ? दो अमरीकत मि्नों ने सुझे बडा वीरगवीर पत्र लिखा हैं । उसमें वे कहते हैं कि धर्म के नाम पर मे भारत में वहुत करके भोष्द्रोषिस्म का पवार कर रहा है, जो कि चनी रवये न पौ हरे को सनता है न नीति-सदाचार को जन स्पत नास्तिक है। थे कहते £ কি मुसकमार्मों की ओर आपको सुलह नॉपाक শতক है और दुनिया के किए एक बता है; क्‍योंकि, थे प्त है আজ मुसक्मान छस के वोल्शेविको की सहायता से पुतर-दिश्षा में अपना जाधिवात्य जमाने को धुन में ॥ । इससे पदले মাঈন अपने पर यद्द तुद्दमत लगते हुए देखों टै। पर अब तक मैने उसपर कोई तबतजडह नहीं की । पर अब तो जिम्मेबार विदेशी লিলা ने शुद्ध भाव से बह इल्जांम लगाया ट, इसलिए मेरी समझ में इसे पर पिचार करने का समय अब घा पहुचा है । सब से पहले सो में यह ईकयार करता कि सुप्ते परता नई, णोस्यनिम्म के मानी ही क्‍या हैं? में इतना ही जानता ह रि उस मामनि में दो दर है-एक तो उसका অনা বরা জং काछा गिश्न खीचा करता है ओर दुसरा उसे संसार फी तमाम ददित पतित आर ओर प्रीक्षित आतियों के वद्धार के किष कर करने बाला बनाता ‡ 1 अब मे नदीं कह सकता किसको बात पर विश्वास करना नाकि मैं जो कुछ फट्ट सकता हैं वह यष्ट द পি मेरी हल-चछ मात्तिक नहीं हैं। वह इशर का इनकार नहीं करती। यह तो उसी नाम पर छक की गड द भौर निरन्तर उसकी प्राचीना करते हुए खल रही द । हा; नद जनतो के हित ক सिए जरूर श्रु की गई है; परन्तु जद जनता तक उसके एद्थ के द्वारा, उसकी सत- प्रवृत्ति के द्वाराही पहुचना चाहती हैं। यह हल-चलछ क्था? एक प्रकार की संयम-पाझन की विधि है। और यही कारण है. कि इसने कुछ मेरे अच्छे से अच्छे साथियों के दिल में निराशा भर दीह) भस्मानो षे मेरी मित्रता पर मजे फक है । इसरूम में केशर फा धता नको बतारे गई हैं । वह तो एक उप सत्ताधारी परमेश्वर को मानता दे । इस्लाम के बुरे से श्ुरे टीकाकार से भी इस्लाम पर नास्तिकता का देषषरारापण नहीं क्रिया 6 । शैसी दवालत मे यदि बोरूरोदिज्म अमीश्वर-वाद दे ता इस्लाम की अर उसकी चुनियाद में एशवता नहीं हो सकती | उस अवस्था में वह दोनों मित्रों का नहों बल्कि विराधियों का आलिगन हांगा । मेन अमेरिकन मित्रों के पत्र की भाषा का ही श्रयोग किया है. पर मे अपने अमेरिकन पाठकों को तथा ओरों छो सृनित करता द्र कि में किसी अम के अघोन दाम नहीं कर रहा ह़ । मेरा दावा नो बहुत धडा है । जो मित्रता है यह तो अली-भाइयों के और मरे बीच है अर्थात कुछ कीसती भुसल्मान परित्रों के और मेरे बीच ६ । हां, শহি में इसे मुसलमानों और हिन्दुओं के--मेरे नहीं- बोच मित्रता कट सद्‌ तो क्या बात हो | पर यद तो एक दिन छा ध्वाब-सा माम हुआ । सक्ष भरस्तव तो यदी एह सकते द्रे कि भ ङु मद मानों के, जिनमें अली-भाई भी है, ओर कुछ द्विन्दुओं के बीच जिनमे एक म भी ष, मित्रता है अव यड इतै कतक जणो रे जाती हैं, यह भविष्य दी कह सकता है। इस मित्रता में कोई बात ग्रोझमोरू नहीं है--भस्पष्ट नहीं है। यद् तो संसार में सब से « २ वः পি ~ পার नवजीवन-प्रकाशन मन्दिर, अहमदाबाद रह अधस्त, २२४ ১ ৯ পদ = ०७ ज- अधिक कुदरती चीज हैं। दुःख की बात तो यह हैं कि इसपर लोगों को ताउ्जुब--महीं, इर भी होता है। भारत के हिन्द ओर मुसलमान यहीं जन्मों ओर यहीं परवरिश हुए है। एक वृर कर दुख -सुल, आशा-निराशा के साथी ४ । ऐपोसी द्वालत में अससे बढ कर कुदरती बात क्या हो सकती है कि दोनों परूपर मित्र और, भाई-एक ফা भारत गाता के पुन ->छन कर रहें? ताब्जुब तो রঙ্গ वानं पर रोना चाद्धा कि दवान मे अगड़े क्‍यों होते है, इस क्षात पर नहीं कि दोनों पकता क्रमे हः रहो है। नौर यह दोनों का संयोग संसार के लि्‌ एक गट कर्यो होमा आहिए ? दुनिया का सबसे আতা संकट ता शाज वह साप्राओ्य वाद हे जो दिन पर दिन अपनी टांगे फैंकाता जाता है, दुनिया को दश्ता जाता हैं, जो फिसीके नजदोक जिम्मेबाद नहीं, और जो भारत को गुक्लाम बनाकर उसके द्वारा दुनिया की तमाम লি जातियों के स्वतव्य अत्तित्व और विस्तार को नष्ट करने पर तुरू रहा ६1 यह साम्राज्यवाद ही देखर को भरता बता रहा है) वह दृश्वर्‌ ॐ नाम पर उमे आदेश के सिक्ताफ करतूत चरता च) बहू अपनी अमानुषताओं, डायरशाही আঁক स्पोण्यायरशाही र मानवना, न्याय जर मेष्यै के आवरण मं छिपा छेता । और इसमें भी अत्यन्त दुः्य की बात অন্ত हैं कि अधिकांश अंगरेज लोग कस यान क) नही जानते कि इसमें उनके द्री नाम का दुरुपयोग क्रिया जे) रहा) ओर इससे भी बढ कर कंम्णाजनक बात यह है कि सोग्य और इश्वर-भीर अंगरेज लोगों के दिल मे यह जया दिया जाता है कि भारत में तो अन की श्रसी बज रही ६--जब कि दर इंकीकत वहाँ कझण-कत्दन हो. रहा ६, और आफ्रिकन जातिया भी आनन्द-भगछ ऋर रही है. हालाकि वाकई वे उनके नाम प्र लूटे ओर गिराये जा रहे ६ । यदि जर्मनी ॐ) बौर योरप के मध्यवती राज्यो क गिश्स्त ने जभन+रूपी संकट का अन्त किया तो प्रित्रल्‍्राष्ट्रों क्री विजय ने णक नवीन संकरो जन्म दिया है जो कि संसार की शानिति के लिए उससे कम कतरनाक ओर मारक नहीं दे । इसलिए में लाहता ह कि हिन्दुओं ओर मुसब्मानों की यढ़ मित्रता एक स्थायी सत्य बात हो जाय ओर उसका धार दीना के उच्च दिलों की परस्पर स्वीकृति हो + तष जाकर वह राणज़ाज्यवाद के कहे को सावन-धर्म के सोने मे सकेगी । हिन्दू-मुस्लिम--मिश्रता का देतु है भारत के लिए আব?” सारे ससाह के लिए एक मगऊभग्र प्रसाद दोना; वर्योकि उसकी कतपना के मूल में शान्ति ओर नर्य -भून-द्वित का समावेश किया गया 1 অলি শান্ত में सत्य भौर अद्दिसा क्रो अनियाय॑-रुूप से स्वराज्य, प्राप्त करने का साधन स्वीकार किया है । उसका प्रतीक है चरखा-जो कि सादगी, स्वाथलूंबन, आत्म-सेगस, स्वेच्छापूजकऋ करो लांगों में सहयोग, का प्रतीक है । यदि गेसी भेत्री सेसार के लिए सकट रूप हो तो समक्षना चादिए ডি वुनिया मे कद्‌ इर दै नहीं, अथवा यदि है तो वह कहीं गद्दरी नोँद में স্তুতি ক জো है ।, { य० ६०) भीहनदाल करमलचैद मः नी ~ === = = ~ 9 न পট न জীমল का सहयय---महाप्रवा मालवीयजी इस শী, হু हैं ओर बाबु गाजेन्द्रपसादजी लिखते हैं ---यह अमूल्य प्रेथ है। धर्म ग्रन्थों ढी तरह इसका परदन-समन होना चाहिए । चरिविगश्न विथा- भिर्यो नो दुसरा अन्ध ना भिर सकता ) ** भृभ्य 18) सोकमाण्य की अर््धांशलि 11) जअयचब्ति अक 1) विन्वू-मुलखमान-समाजा! ( गांधीजी ) ~)




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