व्यसनों के पार | Vayasano Ke Par

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Vayasano Ke Par by उपाध्याय गुप्तिसागर - Upadhyay Guptisagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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& व्यसनो के पार #& व्यसन के मायने (वह समाज ओर, राष्ट्र सौभाग्यशाली माना जाता है जिसका नागरिक। युवा पीढी व्यसन मुक्त है]} तो आइये। पहले हम यह समझे कि व्यसन क्या है? जिससे हमे मुक्त होना हे। यत पुस“ श्रेयस“ व्यस्यति तद्‌ व्यसनम्‌। जो पुरुष को कल्याण-मार्ग से भ्रष्ट कर दे वह है व्यसन। वह असत्‌ प्रवृत्ति जो मानव को निरन्तर उत्तम से जघन्य की ओर ले जाती ै। प प्रवर आशाधर जीने व्यसन शब्द के अशुभ, आसक्ति, अनिष्टफल, विपत्ति, विफल- उद्यम, कर्मफल, भाग्यवश, सखी ओर सम्यकृ- आचरण से गिरना आदि पर्याय नाम बतलाये है। व्यसन नाम सकट काभी है, उपर्युक्त शब्दो मे व्यसन से तात्पर्य सुचरितात्भ्रशे अर्थात्‌ सम्यक्‌ आचरण से गिरना) यो तो व्यसन का अर्थं अत्यासक्ति भी हे, लेकिन देखिये। अत्यासक्तिर्यो एक नही अनेकं होती है, यत किसी को पढने की, किसी को श्रवण की, किसी को खाने की, तो किसी को अधिक बोलने की, किन्तु प्रस्तुत प्रसग मे इन अत्यासक्ति रूप व्यसन से प्रयोजन नही हे। प्रयोजन है उससे, जो हजारो-हजार विपदाओ को आमत्रण देता है। व्यसन के मायने वह प्रवृत्ति, जो जिन्दगी का रस सोख लेती है। वह ऐसी अमरबेलि है, जो जलाभाव मे भौ पनपती




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