व्याकारण की उपक्रमणिका | Vayakarn Ki Upakamnika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
91
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
के स्थान ज हैता घथा, महान् छथः, मदा्छधः ; राजन्
ज्ायहि, राजज्ञाशडि ; भवान् जोवतु: भवाज्लोवतु , उद्यन भज्ञारः,
उद्यव्भज्ञार: ; बौरमन भनत्कार:, वोरमऋतत्कार: ; गच्छ्न् भटिति,
गच्छब्भाटिति ।
४८ । यदि पद के अन्त के त अथवा द परे तालव्य भर होदे तो
त और द स्थान सें च ओर श्र के जगह पर छ होता है । यथा,
जगत् अररषम्, जगच्छ्रख्वम् ; मदत् श्रकटम्, मद्च्छकटम् ; तद्
शगौरम्, तच्छरोरम् ; एतद शक्काब्दोयम् एतच्छकाव्दौयम् ।
৪৫. | यदि पद के अन्त के नकार के परे तालव्य भकार होवे तो
न् के स्थान में ज और ज के स्थान में छ होता है । धया, महान
घब्दः, महाम्सवदः 3 धावन् शण:, धावष्छभः ; निन्टन् তং? লিন্হচ্হন্: |
५० । यदि पद के अन्त के त अथवा द के पर इ होवे ती त के
स्थान में द और ह के स्थान में घ होता है। यथा, उत् इतः,
उद्धतः; उत् रणम्, उद्धरणम् ; मदत् दखनम्, मददसनम् ; तत्
द्दितम्, तद्धितम् › तत् देम्, तद यम् ; विपद् हेतुः, विषद्ेतुः ।
५१ । यदि च अथवा ज के पर दन्य न होवे तो न के स्थान में
अ होता है। यथा, घाच ना, याचजा ; चज नः, सन्नः; खल् नाते,
सन्नाते ; जज निधि, जक्निषि ; जज निष्ठे, ज्निष्वे ; जज 'ने, जक्चे;
राज ना, दाज्ञा., राज नौ, राज्ञो ; ज और ज ये दोनों वर्ण जब
संयुक्त होते हैं तब जञ्ञ ऐश वर्ण लिखा जाता है और ज्ञ भी बोला
जाता हे।
५२ | यदि त और द के परे ट और ठ होते, ती त और द के
स्थान में ट होता है| यथा, उत् टलति, उड्ललति ; महत् टछुनम्,
मच्टृङ्नम् ; त् टका, तद्रौीका ; एतद टछ्लझारः, एतडड्डपरः; खट्
ठकारः) खट॒टकारः ; एतद् ठक्घरः, एतट् दक्ष्,रः ।
५३। थदि त और द के परे ड अथवा ढ होवे तो त और द के
स्थान ड होता है। था, उत् डौनस्, ख्डडौनम् ; भवत् हमस्ः,
भवख्डमरुः ; तत् दिमडिम्, तरड्डिम हिम् ; एतद् डामरः, एतड्डामरः ;
उत् टौकते, उरदौकते ; मदत् ढालम्, मद्दडढटालम् ; एतद् टक्ता,
एतडटक्षा ; तत् दुग्नम्, तड् दुरनम् ।
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