प्रेमविलास (भाग 1-4) | Premvilas (volume-1-4)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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পম সপ ननि य-म या मकण (সস > पटला | प्रसबिलास । [ ७ यह सब जो चित सुहाई। सतगुरु होएँ सहाई, फिर धुर की मेहर पाई। नइया तरे तुम्हारी ॥ १६॥ यह घात मेरी मानो | खुश्का इसे न जानो । गुरु का समझ पयानो | साहब कहें पुकारी ॥ १७ ॥ सतसंग रीति धारो। संशय. सभी बिसारो। हिम्मत ज़रा संभारो । राधास्वामी चोट धारी ॥१८॥ शब्द ६ सतगुरु मेरे. पियारे। घुर घर से चल के श्राये। सुपने में शै देकर। चरनन लिया लगाये ॥ १॥ प्रेमी जनो के संग में। कुछ दिन को रख अलग में। अभ्यास कुछ करा के | सन्म्रुख लिया बुलाये ॥ २॥ | परदे मँ गहरे रख कर । चर्चा वचन सुना कर।, हृद्‌ प्रीति चित वसा कर । सूरत दहं जगाये ॥ २ ॥ फिर ऐसी सोज धारी! गहरी द्या बिचारी। योंही बहाना कर के। खुद घर पे अपने लाये ॥४॥ फिर ऐसी दृष्टि डाली | सूरत इइं बेहाली। परशाद थोड़ा देकर । मन को दिया सुलाये ॥ ५ ॥ क्या भाग में सराहूँ। क्‍या गुन तुम्हारे गाऊँ। दम दम यही पुकारूँ। राधास्वामी प्यारे पाये ॥ ६॥ धुर घर के तुम हो बासी | सतपुष नाम रासी। अगम ओर श्रलख से होकर । गुरुरूप धर के श्राये.॥ ७॥ ग्रारत. लै . सजाई ! पलकन. कंडी . ` लगाई । बीना की धुन बजा कर 1 राधास्वामी नाम-गाये 1.८1




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