प्रेमविलास (भाग 1-4) | Premvilas (volume-1-4)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)পম সপ ननि य-म या मकण
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पटला | प्रसबिलास । [ ७
यह सब जो चित सुहाई। सतगुरु होएँ सहाई,
फिर धुर की मेहर पाई। नइया तरे तुम्हारी ॥ १६॥
यह घात मेरी मानो | खुश्का इसे न जानो ।
गुरु का समझ पयानो | साहब कहें पुकारी ॥ १७ ॥
सतसंग रीति धारो। संशय. सभी बिसारो।
हिम्मत ज़रा संभारो । राधास्वामी चोट धारी ॥१८॥
शब्द ६
सतगुरु मेरे. पियारे। घुर घर से चल के श्राये।
सुपने में शै देकर। चरनन लिया लगाये ॥ १॥
प्रेमी जनो के संग में। कुछ दिन को रख अलग में।
अभ्यास कुछ करा के | सन्म्रुख लिया बुलाये ॥ २॥ |
परदे मँ गहरे रख कर । चर्चा वचन सुना कर।,
हृद् प्रीति चित वसा कर । सूरत दहं जगाये ॥ २ ॥
फिर ऐसी सोज धारी! गहरी द्या बिचारी।
योंही बहाना कर के। खुद घर पे अपने लाये ॥४॥
फिर ऐसी दृष्टि डाली | सूरत इइं बेहाली।
परशाद थोड़ा देकर । मन को दिया सुलाये ॥ ५ ॥
क्या भाग में सराहूँ। क्या गुन तुम्हारे गाऊँ।
दम दम यही पुकारूँ। राधास्वामी प्यारे पाये ॥ ६॥
धुर घर के तुम हो बासी | सतपुष नाम रासी।
अगम ओर श्रलख से होकर । गुरुरूप धर के श्राये.॥ ७॥
ग्रारत. लै . सजाई ! पलकन. कंडी . ` लगाई ।
बीना की धुन बजा कर 1 राधास्वामी नाम-गाये 1.८1
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