आधुनिक काव्य की कलावादी भूमिका | Adhunik Kavya Ki Kalavadi Bhumika

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Adhunik Kavya Ki Kalavadi Bhumika by श्यामलाल यादव - Shyamalal Yadav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२० आधुनिक काव्य की कलावादी भूमिका उपलब्धि माना। साहित्यमत आचारसल्यहीनता की यह प्रवृत्ति प्रत्यक्षत: कलावाद को स्थापित कर रही थी । उन्‍्नीसवीं शताब्दी के सातवें दशक में व्वेटियर के सौन्दयंवादी सिद्धान्त ने पारनेशियन सिद्धान्त का रूप ग्रहण किया | पारनेशियन सिद्धान्तवादियों ने कला का ध्येय स्वयं कला को ही ठहराते हुए कलावादी धारणा का पल्‍लवन किया । इस धारा के प्रमुख कवि ग्वेटियर, लेकान्त तथा हरदिया आदि थे । प्रकृतवाद तथा पारनेशियनिज्मकी प्रतिक्रिया कै स्प में प्रतीकवाद की अवतारणा हुई-- 01050101910 005 000510601 ড85 ৪. 7৪৮০1 8981056 2210- 78187 10 90001516 800. 288105 0810789518171507 25 617)5 0০০ 01621 00.১11 पारनेशियत कवि विषय को उसके यथार्थ रूप में ग्रहण कर के फिर उसी रूप में पाठक के सम्मुख प्रस्तुत कर देते थे । इन कवियों का प्रस्तुतीकरण रहस्यात्मक न होकर प्रायः सीधा एवं सपाट होता था। रहस्य के कारण विषयवस्तु को समझलने के प्रयत्न में धीरे-धीरे विश्वास करने से जो एक विशेष प्रकार का आनन्द प्राप्त होता है, वह पारनेशियन कविता में क्षीण रूप में विद्यमान रहता था । अत: प्रतीकवादियों ने काव्यानंद को प्रगाढ बनाने तथा काम्य को रहस्यात्मक रमणीयता से मण्डित करने की दिशा में विशेष प्रयास किये। इस प्रकार पारनेशियनिज्म तथा प्रकृतवाद के विरोध में प्रतीकवाद की स्थापना की गई ¦ प्रतीकवाद को फ्रांसीसी सौन्दर्यवाद की विकास-श्यु खला की एक कड़ी के रूप में लिया जा सकता है। सी० एम० बावरा ने प्रतीकवाद को सौन्दर्यवाद का रहस्यात्मक संस्करण स्वीकार किया है प्रतीकवाद के संस्थापकों एवं पोषकों में बोदलेयर, मलामें, बलेंन तथा बेलरी के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। एडगर एलेन पो की सौन्दर्यवादी धारणा ने भी प्रतीकवाद को प्रभावित किया। पो की काव्य-विषयक सौन्‍्दर्यवादी धारणा को उसके निम्नांकित शब्दों मे देखा जा सकता है-- अगर हम अपनी आत्मा की गहराई में ड्बकर विचार करें तो पता 1. एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, भाग २१, पु० ३०१ 2. हैरीटेज आफ सिम्बोलिज्म--सो » एम० बावरा, पू७ ३




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