मुद्रा की रूपरेखा | Mudra Ki Rooprekha

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Mudra Ki Rooprekha by मूलचंद वैश्या - moolchand vaishyaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परन्तु केवल सामान्य सृल्य सापक की स्थापना से वस्तु-विनिमय की समस्त कॉठनाइयाँ समाप्त नहीं हो गई थीं । লীলা पक्षों को सम्पर्क में लाने की समस्या अब भी विद्यमान थी | অল कठिनाई तब समाप्त हुई जब समाज में हिसाव की मुद्रा (बकरी) को विनिमय का माध्यम भी स्वीकार किया गया । तत्पश्चात्‌ अनाज का माँस से प्रत्यक्ष विनिमय होता समाप्त हों गया। अब अनाज को बकरी के माध्यम द्वारा खरीदा तथा बेचा जाने लगा और बकरी के बदले में माँस प्राप्त किया जाने लगा। विनिमय-अनुपात निर्धारित करने के अतिरिक्त मुद्रा समाज में विनिमय माध्यम का कार्य भी करने लगी । फलस्वरूप अनाज तथा माँस के अकेले तथा प्रत्यक्ष विनिमय के स्थान पर अब अनाज तथा बकरियों तथा माँस का दोहरा और यप्रप्यक्ष विनिमय स्थापित हो गया। प्रत्यक्ष विनिमय करने के स्थान पर लोग अब समाज में अपने व्यवसायों को एक मध्यस्थ [मुद्रा) के द्वारा करने लगे । विभिन्‍न वस्तुओं के मूल्यों को सामान्य सुल्य-मापक के माध्यम द्वारा निर्धारित करना समाज के लिए अन्य प्रकार से भी वरदान सिद्ध हुआ | वस्तु-विनिमय प्रणाली में अत्यधिक पृथक विनिमय-अनुपातों (सूल्यों) की समस्या उत्पन्न डोती थी । साधारण मनुष्य के लिए इन घने विनिमय मूल्यों को याद रखना कठिन था । उदाहरणार्थ, यदि समाज में १०० वस्तुएँ थीं तो হুল वस्तुओं के विनियम के लिए ४,६५०१ पृथक्‌ विनिमय-अनुपातों (क्रीमतों) की आवश्यकता होती थी। हिसाव की इकाई का कार्य सम्पन्न करके मुद्रा ने इत पृथक विनिमय अनुपातों की संख्या में आश्चयंजनक कमी की । मुद्रा के वस्तुओं के सुल्यों के सामान्य सूल्य-मापक का कार्य करने के कारण यह संख्या घटकर केवल ९९ हो गई । इससे ग्रह्न स्पष्ट है कि आधुनिक सभ्यता की अनेक सुविधाएँ, जो मनुष्य को करोड़ों वस्तुओं के उपभोग द्वारा प्राप्त होती है, मुद्रा के आविष्कार बिना कदापि संभव नहीं हुई होती । . हिसाब की इकाई और सामान्य मूल्य-मापक का कायं करके वस्तुओं के विनिमय को सुविधाजनक वनाने के अतिरिक्त मुद्रा के आविष्कार ने मूल्य के संचक का कार्य सपन्न करके भी समाज में मनुष्य के लिए धन की प्राप्ति तथा संचय करने का कार्य बहुत सरल बना दिया । वस्तु- विनिमय अथंव्यवस्था में केवल उस व्यक्ति को धनी समझा जाता था जिसके पास आवश्यक वस्तुओं का अत्यधिक संग्रह होता था। उदाहरणार्थ, जिस व्यक्ति के पास अनाज उत्पादन करने के लिए विस्तृत खेत, शिकार खेलने के लिए घने जंगल, भार ढोने तथा दूध देने के लिए पशुओं की विशाल संख्या थी, उसी को वस्तु-विनिमय अथंव्यवस्था मे धनी विचारा जाता था। परन्तु इन सकरा रखना तथा प्रबन्धन करना अत्यधिक कठिन कायंथा। मृद्मका आविष्कार होने पर सनुष्यको অলী बनने के लिए मुद्रा के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संग्रह करने की आवश्यकता नहीं रही क्योंकि आवश्यकता अनुभव करने पर मनुष्य मुद्रा के द्वारा किसी भी उपभोग वस्तु को खरीद सकता था। मुद्रा में तरलता की विय्षता है। इस विशेषता के कारण मुद्रा अन्य वस्तुओं से भिन्न है। किसी वस्तु द्वारा समाज में हिसाव की इकाई, विनिमय माध्यम तथा समुल्य-संचक के तीन प्रमुख कार्यों का सम्पन्न क्रिया जाना मुद्रा के आविष्कार का आरम्भ है । क्राजथर के विचारानुसार “मुद्रा मनुष्य के मौलिक आविष्कारों में से एक महत्त्वपूर्ण आविष्कार है। ज्ञान की प्रत्येक शाखा की एक मौलिक खोज होती है। जिस प्रकार यन्त्रशास्त्र में पहिया, विज्ञान में अग्नि तथा राजनीतिश्ञास्त्र में मत विशेष 2 | ऋ ^ 2~ -- 8 4. হা 02160511020 18 ५61६५ 70 16 शिप व ; ला€ 2 5003 10 ४8 ६0६ 10010109107 00107009016055 95010817550 17 {06 09.




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