प्रेमचन्द विचारधारा और साहित्य | Premachand Vicharadhara Aur Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रक्रिया का निर्माण करता है। कमल किशोर गोयनका के शब्दों में-“लेखक का संवेदनशील मन सामाजिक जीवन की विषमताओं, समस्याओं, कुरीतियों आदि से भावित होता है [४ মির यही बात कमलाकान्त पाठक इस तरह कहते हैं-”सामाजिक परिस्थितियाँ अनिवार्यतः साहित्यिक कर्तत्व को प्रभावित करती हैं। संकट के समय सम्पूर्ण समाज की भावसत्ता एकरस हो जाती है। उस युग की चेतना में सामूहिकता का तत्व सर्वोपरि होता है। हम अपने-अपने पृथकत्व को भी किसी न किसी रूप से उस समग्र भावसत्ता और ए ¦ 1 + भ च प, से सम्बद्ध अनुभव करते है 5 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल सामाजिक चेतना को এ; শা ছি विचार प्रक्रिया और रचना-प्रक्रिया दोनों से जोड़कर देखते हैं| सामाजिक लेखक की | चेतना के अनुसार ही लेखक की विचार प्रक्रिया गठित और परिवर्तित होती रहती है। वह लिखते हैं प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। जनता की चित्तवृत्ति बहुत कछ राजनीतिक, सामाजिक, साम्प्रदायिक तथा धार्मिक परिस्थिति के अनुसार होती 1 उचः शुक्ल आदिकाल को लड़ाई भिडाई ओर वीरता के गौरव का समय कहते स्पष्ट है कि साहित्य में इस युग की छाप है। हर काल और हर देश के साहित्य में वहाँ की सामाजिकता की छाप रहती है। हिन्दी ही नहीं हर साहित्य में यही बात दिखाई पडती है! जर्मन साहित्य की परम्परा में भी यही बात लक्षित होती है-“उन्नीसवीं शताब्दी में प्राकृतिक विज्ञानों के तेजी से उदय होने के कारण आदर्शवादी दर्शन विघटित और अस्वीकृत होने लगा | रूसी साहित्यकार गोर्की की विचार प्रक्रिया का निर्माण वर्ग-संघर्ष के युग में हुआ। डॉ० केशरी नारायण शुक्ल के अनुसार-”उननीसवीं शती कं अतम गोर्की कानिर्माण या गठन होता है ओर यही समय है जब कि स्वाधीनता या स्वतंत्रता आंदोलन का नया युग शुरू होता है। जिसमें मजदूर वर्ग सबंसे आगे हैं [ ४ यही नहीं इंग्लैण्ड में भी विक्टोरिया के राज्यकाल का प्रभाव वर्णन करते समय श्री नारायण मिश्र तथ्य को रेखांकित करते हैं-“सामाजिक अशांति इस काल का विशिष्ट लक्षण रंग-रखा था, उत्साहपूर्ण उद्योग, समाजसेवा की आकांक्षा तथा जीवन की समस्याओं का गम्भीरता से सामना करने की प्रवृत्ति इस काल के साहित्य मेँ प्रतिध्वनित है |» छः नह শে এ] श | 2 লগ শে 6 समाज में होने वाले सामाजिक सुधार आंदोलन लेखक को प्रभावित करते हैं| यद्यपि प्रत्येक लेखक के लिये यह प्रभाव आवश्यक नहीं किन्तु विचार प्रक्रिया के निर्माण | में इसे सहायक कारण माना जा सकता है । अकेले प्रेमचन्द की विचारधारा को आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, थियोसोफिकल सोसायटी, गाधीवाद ओर समाजवादी आदोलन ने प्रभावित किया हे ¡ इसी तरह आर्य समाज का प्रभाव द्विवेदी युगीन लेखकों पर अधिक पडा है । गांधीवाद 1916 ई० से लेकर 1936 तक के साहित्य को पूरा प्रभावित करता हे | इसी तरह रूस मेँ मार्क्सवादी विचारधारा तत्कालीन रूसी लेखकों की विचार प्रक्रिया को नया आयाम देती है। द द देश की राजनीतिक गतिविधियाँ भी लेखक के विचार निर्माण का हेतु बनती है। . 10/ प्रेमचंद : विचारधारा और साहित्य




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