आर्पग्रन्थावली | Aarpagranthawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० सांख्य-शाखं तत्व-समास ल वव पल अथातस्तत्व समसः ॥१॥ शब्दाथे-( अथ ) अव ( अतः ) इस लिये ( तत्त्व-समासः ) तत्वों का संक्षेप । अन्वयारथ-अब ( यतः दुःखों की निद्क्ति का साधन तष्तों का यथाथ ज्ञान है ) इसालिये तक्षों का संक्षेप कहते हैं ॥ भाष्य-इस जगत में चेतनावाले भरयेक जन्तु को “ में सुखी हाउ, कथ दुःखी न दो । इसप्रकार सुख की उत्पत्ति और दुःख की नित्त मं बलवती इच्छा होती हे । पर दुःख की निरन्त हुए बिना छुख की उत्पत्तिं हो नदीं सक्ती, क्योक्रि सुख ओर दुःख प्रकाश ओर अन्धकार की नाई परस्पर विरुद्ध धर्म हैं। वह इकहे रह नहीं सक्ते । सो जो यह चाहता है, के सदा के सुख में वास करे, उसको दुःख की जड काट दनी चाहिये । दुःख की जड़ अज्ञान है, जितना अधिक अज्ञान होगा, उतनाही अधिक दुःख होगा, ओर जितना थोड़ा अज्ञान होगा, उतनाही थोड़ा दुःख होगा, क्योंकि जिप्त तेत्त का अज्ञान होगा, उप्ती से दुःख होगा । जिसका यथार्थ ज्ञान होगया, उससे फिर दुःख नहीं, छुख होगा। जिस २ तच का यथाय ज्ञान होता जाएगा, उस २ से अभय मिलता जाएगा,जब सारे तत्तों का यथाय ज्ञान होजाएगा, तो प्व से अभय मिरु जाएगा । सो सारे तक्छों का यथाथ जानना ही दुःख की जड़ को काटना है, इसलिये सारे तन्वो का संक्षेपतः विचार आरम्भ करते हैं ॥




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