अनीति की राह पर | Aniti Ki Rah Par

Aniti Ki Rah Par by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नीतिनाश की श्रोर है और तलाकों की संख्या पिछले बीस बरस के श्रंदर दूनीसे श्रचिकहो गई है । “'स्त्री-पुरुष दोनों के लिए समान नंतिक मानदंड होना चाहिए” इस सिद्धांत के नाम पर स्त्री को जो भोग-वासना की मनमानी तृत्ति 'की स्वतंत्रता दे दी गई है उसकी भी में चलती चर्चा भर कर सकता हूं । गर्भाधान न होने देने की क्ियाग्रों और गर्भपात कराने के उपायों के पूरंता प्राप्त कर लेने से स्त्री-पुरुष दोनों को नेतिक बंधनों से पूर्ण मुक्ति मिल गई है । ऐसी दशा में श्रगर खुद ब्याह का ही मजाक उड़ाया जा रहा है तो इससे किसी को अ्रचरज-भ्रचंभा न होना चाहिए। ब्यूरो ने एक लोकप्रिय लेखक के कुछ वाक्य उद्धृत किये ह | उनका श्राशय यह हँ- “मेरे विचार से ब्याह उन बड़े-से-बड़े जंगली रिवाजों में से एक हे जिन्हें आदमी का दिमाग श्रब तक सोच सका हूँ। मु्े इस बात में तनिक शव- शुबहा नहीं कि मानव-समाज अगर न्याय और विवेक की शोर कुछ भी बढ़ा तो यह प्रथा दफना दी जायगी ।...पर पुरुष इतना मद्ठुर और स्त्री इतनी कायर हैँ कि जो कानूत उनका शासन कर रहा है उससे भ्रच्छे ऊंचे कानन की माँग करने की हिम्मत वे नहीं कर सकते श्री ब्यूरो ने जिन क्रियाओं की चर्चा की हूँ उनके नतीजों और जिन सिद्धांतों से उन क्रियाग्रों का समर्थन किया जाता हैँ उनकी उन्होंने बड़ी बारीकी से समीक्षा की हैं । वह कहते हें--““यह नीति-बंधन तोड़ फेंकने का आंदोलन हमें नई भवितव्यताश्रों की ओर खींचे लिये जा रहा है ।पर वे हूँ क्था? जो भविष्य हमारे आगे आ रहा है वह क्या प्रगति, प्रकाशन सौन्दयं श्रौर उत्तरोत्तर बढ़नेवाले अध्यात्म भाव का होगा ? या पीछे लौटने, अंधकार, कुरूपता और पशुभाव का होगा जिसकी भूख दिन-दिन बढ़ती जा रही है ? यह नैतिक स्त्रच्छंदता जिसकी स्थापना की गई हूँ क्या दक्रियानूसी नियमों के विरुद्ध किये जानेवाले उन फलजनक विद्रोहों, हितकर विप्लवों में से हें जिन्हें श्रानेवाली पीढ़ियां कृतज्ञता के साथ याद किया करती हें, इसलिए, कि उनकी प्रगति उनके उत्थान के लिए विशेष कालों में श्रनिवायं हो जातोहं ? श्रथवा वह मानव-मन




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