गल्प - संसार - माला भाग - 3 | Galp Sansar Mala Bhag - 3
श्रेणी : भाषा / Language
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)9.
दोनो प्रकार के साहित्यों में किसी प्रकार के सुदूर के जातीय सम्बन्ध का
ग्राभास तक नहीं दिखाई देता । हमारा प्राचीन सादित्य प्रधानतः धम-मूलक
था | उसका विषय-विन्यास, नरित्र-चित्रण, रचना-प्रणाली आदि सभी बातें
उसी के अनुरूप थीं। इस देश की घंस्कृति, शिक्षा और अनुश्रति ने उन सब
साहित्य-शाखाओं को संजीवित किया था | शताब्दियों पर शताब्दियाँ बीतती
चली गई , लेकिन फिर भी वैचित्र्य-वहीन, उत्थान-पतन-विद्दीन और एक ही
बने हुए माग से यह साहित्य धारा बराबर बहती चली आई है। श्रंगरेजी
शासन-काल में जिन प्रकार हम लोगों के बहुत दिनों से चले श्राये हुए
सामाजिक संस्कारों, सामाजिक संघटनों और शिक्षा-प्रणानी में विजातीय
भावादशं ने प्रवेश किया और उस आदश्श-विपयेय के परिणाम-स्वरूप धीरे-
घीरे एक नवीन जीवन-आदर्श की सृष्टि हुई, उसी प्रकार हमारे यहाँ के साहि-
त्य में भी कृष्णु-लीला-संगीत, श्यामा-संगीत, ग्राम्य-संगीत श्रौर मंगल-काव्यों के
नपे-तुले और एक रूप में बंधे हुए इतिहास में पहले-पहल पाश्चात्य साहित्य के
दुनिवार जल-प्लाबन के स्रोत ने प्रवेश किया | हम लोंगों के पास जो पुरानी
पूँजी था, वह इस विज्ञोभ में ट्ूट-फूटकर, उलट-पुलटकर और घोई-पोंछी जाकर
इस स्रोत मे बिलकुल निःशेष हो गई | जब यह उद्दामता कुछ रुकी, तब हम
लोगो ने देखा कि एक नवीन साहित्य के आदशं की मृत्तिका का स्तर फिर से
जाग उठा है, जो था तो हमी लोगों का, परन्तु फिर भी जिसक! हम लोगों ने
कभी आशा नहीं की थी ।
जीवन की श्रोर से नये और पुराने क समन्वय का बौरे-धीरे साधन हो
गया है । इसी लिए पुराने का भग्नावशेष समाज्ञ के शरीर में यशथेष्ट मात्रा में
बच रहा है | किन्तु साहित्य की ओर से सम्बन्ध-सूत्र बिलकुल टूट गया है ।
यह समर में नहीं ग्राता कि यह बास किस तरह हुई । श्रव यह प्रश्न उठाने
से कोई लाभ नहीं कि यह जो कुछ हुआ है, वह श्रच्छा हुआ है या बुरा । जिस
दुलंध्य नियति ने इस देश में अंगरेजी शासन का प्रउत्तन क्रिया था, उसी
की अमोघ व्यवस्था से यह बात अनिवारय॑ रूप से हुई है। इस आदश-संघात
के परिणाम -स्वरूप बंगला-साहित्य में पहले देवताओं ओर देवियों की कहा-
नियों की जगह नर-नारियों की कट्दानियाँ बनने लगीं श्रौर देव-माह्दात्म्य
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