जाई - जुही और नदी की बाढ़ | Jai - Juhi Aur Nadi Ki Badh

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Jai - Juhi Aur Nadi Ki Badh by श्री विनायक सदाशिव - Shri Vinayak Sadashiv

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) ककश रघर में कहे गये भाई' के ये शब्द सुनकर जाई की जान निकल गई। फिर आगे कुछ कह्दती हुईं भाई' रासोईघर से बाहर निकल आई । आँखें निकालकर हाथ मटकाते हुए वह जाई पर बरस पड़ीं। उन्होंने ऐसी भीषण मुद्रा बनाई कि बेचारी जाई को एक क्षण भी जुही के पास बैठने की हिम्मत न हुई । “री चुड़ेल ! अभी जुही की शादी नहीं करनी तो क्‍या तेरी तरह धीग बनाकर जनम भर घर म रखना है ! यह उनकी अन्तिम धघन.-गजना सुनते ही जाई जुही के घर से भाग खड़ी हुड्डे । इस घटना स जाई को कितना दुःख हुआ, इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। सीधे-सादे इन शब्दों के आधार पर अब माई बड़ा भारी तूकान खड़ा कर देगी । वे अड़ोसी-पड़ोसियों तथा माँ से इस बात की बच्चों कर बदला लेंगी। और उसी प्रकार उसका बदला जुद्दी से लेंगी | उसी के कारण तो जुही को मार और ताने सहने पड़ेंगे, इत्यादि बातें जाई भच्छी तरह जानती थी । अनजाने मे यह जो उसस छोटी सी भूल हो गई थी, उसका एक ओर अयंकर परिणाम भी रस भोगना पड़ेगा और वह यह कि अब उर जुही के चर आने-जाने को नहीं मिल्लेगा भर न ही उसकी हिम्मत ही वहाँ जाने की होगी । जुही को भी साई' इस घटना के बाद जुद्दी को एक आदश बहू बनाने के लिए जो पाठ पढ़ा रही है ओर इसी लिए अब वह घर के बाहर क़द्स न रख सकेगी । वह चाहती थी कि जुदी से विच्छेद होने के पूचे इस दो दिल के समय में वह उसके साथ खूब रह ले, अपनी पसंद के खेल जी भरकर खेल लें; मन्दिर के पीलेवाले बरगद पर डले भूले पर उसके साथ गा और भूल ले. कुछ , बची आपस की प्रेम की बातें कर ले । ये सब विशार जुह्दी के घर आते-आते उसके दिमारा में छठे थे ; परन्तु इस घटना ने तो उन सारी श्ाशाओं पर पानी फेर दिया ! इस कारणों के साथ उसके हृदय में ठेस पहुँचानेवाला एक झौर कारण हो गया था जो हीन कमं ( नाचने, गाने का ) उसकी जात्ति करती है, उसे




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