हमारी चिड़ियाँ | Hamari Chidiyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तालीबी चिड़ियों के घोंसले अक्सर पानी के किनारे घनी घास मे छिपे रदते ई । पर फ़ाखता के घोंसले की हालत बिल्कुल उससे उलटी होती दै । इसके धों ले को धोंखला न कद कर मचान कद वो ज्यादा ठीक होगा । तितरी बितरी दस बारह टह- नियों को किसी दो फकी डाल पर विद्धा कर सभी पैंडकियाँ ऐसे खुले में अडे देती हैं कि जो ऊपर से ही नही बल्कि नीचे से भी दिखाई पड़ते रहते हैं । घोंसला तैयार हो जाने पर अडों का वर्णन जरूरी हो जाता है | अ्रडों की तादाद, चिड़ियों के छोटे बढ़े शरीर के अनुसार न होकर, किस नियम से ते की गई है यह तो मालूम नही, पर अ्रक्सर देखा गया है कि जिन चिड़ियों के अडों को शत्रुओं के द्वारा नष्ट होने का कम डर रहता है, वे साल में एक बार और एक ही दो अडे देती हैं। पर जिनके अडे अक्सर दुश्मनों के शिकार हो जाते हैं धनेश 1 3० अडे तो देती दी हैं, साथ ही साथ साल में इनके अडे देने का समय भी दो बार हो जाता ६। ' अंडो के रण में भी बहुत भेद रहता है। जित्त प्रकार चिड़ियों की पोशाक का रग मादा को शाकर्षित करने के अलावा अ्र-ने छिपने में भी मदद देता है, उसी प्रकार अडटों के रग भी अपने पास पड़ोस की वरतुओं के रंग से इसीलिए मिलते-जुलते द्वोते हैं कि वे जल्दी से दुश्मनों की निगाद् में न पढ़ें । মিতী के यूराखों में दिए जाने वाले अडे अक्सर सफेद होते हैं ।' क्योकि उस श्रवकार में प्रकृति फो बेकार फिसी तरद के रंग खर्च करने की जरूरत नहीं जान पड़ती । पैंडकी आदि के सकेद अंडे खुले में रहने के कारण तेज रोशनी के चमक में एक प्रकार से छिप से जाते हैँ। पर भाठियों के नीचे বনি নাবী লীন प्रादि के अडे यदि मठमेली चित्तियों से भरे न रहेँ तो उन्दूँ देखने में देर ही न लगे | शरड़े पर बैठने का भी कोई खास नियम चिटड़ियों में नहीं है। बहुत सतऱ्् रहने के कारण कौर বি; লং লারা হালা पासेयारी से अडो पर बैठते है। कुछ की मादा अरे पर से इतती ही नहीं और नर का फाम विफ उसे जिलाना भर रहता है| कोर कोई नर ऐसे होते ६ कि मादा को अडे सेते समय कोई मदद दही नहीं देत। आर कुद्ध चिटियों में ऐसा भी द्दोताह फ़िनर मादा दोनों में से कोई भी प्रर) म प्रयाट नहों फरता | प ति (१३३.




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