काव्यमय उत्तराध्ययन सूत्र | Kavyamay Uttaradhyayan Sutra 

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सार्थक शब्दों का संयोग, सुखद छन्‍्दों का प्रयोग, विवेकपूर्ण भावों का योगायोग मानव-मात्र के लिए विशेष प्रेरणाप्रद हैं। निश्चय ही यह कृति “युग-मांग” की पूर्ति कही जा सकती है। भाषा, भाव शैली एवं छन्द विधान सर्वथा आकर्षक है। मेँ मुक्त कंठ से इस कवि कर्मं की सराहना एवं तप. पूत मुनि विद्यावारिषि पूज्यपाद वीरेन्द्रमुनिजी म.सा. की सादर अभ्यर्थना करता हूँ कि उन्होंने अपने अथक अक्षीण परिश्रम के द्वारा भवसागर को क्षीरसागर में परिणत कर मुझे भी अमृत मंथन का सुयोग देकर, धन्य-धन्य बनाया। मैं उनके प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धा एवं कृति के प्रति असीम आस्था प्रकट करता हू कि यह प्रणीत कृति उतरोत्तर समय, समाज, संस्कृति ओर साहित्य का मंगल प्रकाश स्तम्भ ओर संस्कृति का जलयान होगी । सत्यम-शिवम्‌-सुन्दरम्‌। “इत्यलम्‌” वशंवद मानकचन्द रामपुरिया महामहोपाध्याय




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