शारीरक - विज्ञानम् भाग - 2 | Sharirak - Vigyanam Bhag - 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
500
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तृतीय श्रष्याय प्रथम पादः/३
“त एतास्तेजोमात्राः संभभ्याददाने- (बः ४।.४)
. इति तेजोमान्नाशब्देन- क्रणोपादानवद् भुतसात्रोपादानं न श्रयते तेन भुतमात्रा
अनुपादायव जीवो -गच्छतीति प्रा्तेउच्यते-देहान्तरभ्रतिपत्तौ जीवो गच्छति देहवीनैमुत-
सुक्ष्मः संपरिष्वक्त इतिं ताण्डयधुतौ पञ्चान्ति विद्यायासुदहालक्रवाहप्रष्नोत्तरास्थामव-
गम्यते । तथाहि- রর ४, = ऋं
वेत्थ यथा पञ्चभ्यामाहृतावापः पूर्दषवचसो भवन्तीति +- (छां ५।३ बु. ६।२)
भ्रव इसको ये प्राण आते है, बृहदारण्यक ४।४)
इत्यादि से-
_ इसरा श्रधिक नही भौर अधिक कृल्याण.वाला रूप, प्राप्त करता है ।
यहां तक ससारके प्रकरण में स्थित. श्रति वाक्यं से मंख्यश्रण को सहायक
बनाता हुश्रा जीव इन्द्रिय सहित मन सहित विचा, कभ तथा पूवं प्रज्ञाका परिग्रह करते
हुए. पिछले देह को छोड़कर दूसरे देह-को प्राप्त करता है, यह:सिद्ध हुआ, -वहा,
“बह इन तेज' की मात्राओ्रों को ग्रहण करता हुआ” (वृहदारण्यक उपनिषद् (४४)
इस प्रकार तेज की मात्रा इस शब्द के द्वारा साधन के ग्रहण के समान भ्रूत की
मात्राभ्रों का ग्रहण नही सुना जाता । इससे भ्रूत की मात्रांश्रोंकी बिना लिए ही जीव
शरीर को छोड़कर जाता है यह प्रकट होता है । उस पर यह कहा जाता है'कि “दूसरे देह:
का ग्रहण करने के समय जीव शरीर को छोड़कर जाता है, देह के वीजभूत जो सुक्ष्म है,
उनसे घिर कर इस ताण्ड्य श्रेतिं मे पञ्चाग्नि विद्या में उहीलकं तथा ्रवाहूकणा के
प्रश्नोत्तर से यह् विषय ज्ञात है, स्पष्टता के. लिए,
“क्या तुम जानते हो कैसे पांच ही आहुति में जल पुरुष रूप हो ज़ाता है,
(छा० उ० ५1३, बु० उ० ६1२)
प्रश्ते शपजेन्य पृथ्वीपुरुषयोषित्सु.पञचस्वस्निषु भद्धासामवृष्द्यन्नरेतोरूपा: पञ्चा-
हतीदशंपित्वा- ।
“इति तु पञ्चंभ्यामाहुतावापः पुरुषवचसो भवन्तीति (छां ५४६)
निरप्यते-। तत्र यद्यं मूतमान्रात्निरपरिष्वक्तो- गच्छेत् तहिःभत्यवरोहेऽपासनरुप--
स्थितेः, शद्धाद्याहुव्यसंभवाद्पा- पुरषरूपता न स्यात्-। तस्माद् भरुतमात्रान्वितो यातोति
लम्यते.। नन्वपां पुरषाकारपरिणामभतोतेगंच्छता जीवेन तासामेव परिष्वद्धः प्राप्नोति चः
सर्वेषां भतसुक्ष्माखामिति चेन्न । पुरुषदेहारस्भिकाणासपां त्यात्मकत्वात् ।
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