जैन धर्म और तेरहपंथ | Jain Dharm Aur Terahapanth

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Jain Dharm Aur Terahapanth by सुशील शास्त्री - Sushil Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सैरह पथ ‰ साधुओं को देसऊर वह घोला--सह्ाराज़ ! उदास कैसे बेरे हो, कया कारण है ? भीखन-भाई क्या बताए, शुरु मे हमें सम्प्रदाय से बाहर कर दिया है । हम नया पथ बनाना चाहते दे, पर अभी तक पथ का नामररण सस्कार नहीं कर सके हैं, बस इसी बात की चिन्ता है । मिरासी--ओह | नाम रसना क्‍या कठिन है, बताओ फितने साधु हो १ भीसन--हम तेरह साधु हैं, नाम अच्छा सा बताना | मिरासी-सुनिये -- आप आपको गिल्ला करे, ते आपको मत । देखोरे शहर के लोगा, तेरा पथी त्तत ॥ भीसन ने जब अपने पथ का नाम तेरा पथ सुना तो बडा हर्पित हुआ । यत “तेरा! शब्द के टो अथे निऊलते हैँ. --एक तो तेरा साधुओं का पथ, दूसरा --भगवान्‌ | तेरा प्रथ। किन्तु दूसरा अर्थ कल्पित है क्योंकि --बागड देश मे तेरा शब्द हने में नहीं आता | वहा ता थारा? कह्दा जाता है । यदि द्वितीय ऋथे को समक्त रखकर नामकरण किया जाता तो श्रवश्यमेव भथा पथ नाम रसा जाता । वहा “तेरह साधुओ का निर्मित पथः दी शथे र ऊर नाम कल्पित फिया गया है। भीसन को नेता घना दिया गया । वे तेरह ही भेषधारी जदा पर खानक बासी साधुओं का गसनागमन नहीं था, उसी तरफ चलं पडे ।




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