प्राचीन हस्तलिखित पोथियों का विवरण भाग - 4 | Prachin Hastalikhit Pothiyon Ka Vivaran Bhag - 4
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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१५८५८--मक्ति ज्मा । ग्रं००-शिवाराम' । छि०--»:। र० का०-->»६ । छिं०
का०-->९। (सरभन्ग-सम्प्रदाय) । पत्र-सं<- २६६ । दणा--खरिडित ! ०--
4 १२ > ६” । छिपि-नागरी ।
` १६६--भक्ति झेसाछ। पग्रं०--शिवाराम। लि०--रासनाथ। २० का०--४ । छि० का८ --
१८६२९ दि० । (सरभड्-सम्प्रदाय) | पत्र-सं०--४६४ । दृशा--खणिडत । क्रा०--
६?”)८६*६” | छिपि--मागरी । |
१४७ --विवेकसार। ग्रं०--किनाराम । छि०---)८। र० का०--%॥। छि० का०---
१८६७७--जि ० । पत्न-सं ०-३३ । दशा--पूर्ण। आ०---१ ०!?)१८४” । छिपि--नागरी!
१८६८-- विचारमाछा। ग्रं०--अनाथदुस रे । छि०--)८। र० का०--१७०६ वि०।
छलछि० का०---१ ८६६ धि ० । पन्न-सं ०-१२ | दुशा--पुर्ण । आ०---१ ०*१ ००२९५०४१ ।
छिपि--मागरी ।
१९६--सहज प्रकाश । प्रं०--सहमो धा४ ८ चरनदास की शिष्था ) रि०-)८ । र”
का०--;। हि” का०->। पत्र-सं०--१०। दशा-खणिडत । आ०~-
4 दे१,१९८.४११ । हछिपि- नागरी ।
१६० सत्तनाम । प्रं०-- भिनकराम | छि०---)८। १० का०--८। छि० क्ाौ०--)८।
. चनक्रसं० -- १८ | दुशा--पूर्ण । आ०--६ '४”)४” । छिपि--केथी । द
१६१--निरगुन । ग्रं०--गोपालजी छाछ । लि०---)८। २० का०---१८। छि० का०--१८।
पन्न-सं ०--३ ! दुशा--खणिडत । आ ०-- ८°१०,५.६ ६ । छिपि--कथी ।
१६१०-सारविवेफ | प्रं०--)८। छि०--)८। ₹० का०--)८। छि० कौ०---3८।
८५ प्रसं ०--१७ । दशा क्षरिडत । आ०--७*१०१ > ५१ । छिपि-क्थी । `
` १६१- भजन निगनः९ | ग्रं०---)८। रि०--सस्तपति साहेब । २० का ०-१८ छि०का ०---)८।
पम्र-सं ०-२५ । दृशा--खग्रिडत | आ०---७-११११८६ १०!! । लिपि--कथी ।
१. सरभज्ञ-सम्प्रदाय के सन्त; काशी-निवासो; सं० १७८७ के छगमग वत्तमान ।
টা .. *্প্হাললযাহ (वाराणसी)-निवरासी रामरसाल के प्रन्धकार; सरभन्नं-मत के साधु । काशी के
हिषाका-धाट मँ इनका मठ प्रसिद्ध है । गोसाई नाम से इनके सम्बन्ध कौ भनेक किंवद्न्सियाँ
... उस्त क्षेत्र में प्रचलित हैं । द
३--सं* १७२६ के लगभग वत्तेमान; मौनोबाबा के शिष्य; 'जन अनाथ' नाम से प्रसिद्ध; नागरी
श्रचारिणी-सभा (काक्चो) को भी इनको रचना खोज मँ मिरो हे । दे०-खो° वि० १९०६-
<, प्र° स्ं° १२९ ए० भौर बौ ।
४~~-स्वामी चरनदास की शिष्या, सं० १८०० के षछगमग वत्तमान; परीक्षितपुर ( दिल्छौ )
जिषाधिनौ । ` :
অস্প্মহযানে (बिहार)-निवासी; सरभनज्ज-सन्त; सरभन्न-सम्प्रदाय के एक विशेष शाखा के प्रवत्तक।
६-- कबीरदास, शुखसीदास तथा सरभङ्ग-सन्तो के स्फुट पदों का संग्रह । आधुनिक लेख ।
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