गीता लोचन | Geeta Lochan

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Book Image : गीता लोचन  - Geeta Lochan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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0 যী অক্ষ অহা संस्थाओंम अनेक धविक दान फरते हैं परतु उसकी स्थिति फिए क्या दोती है इसझो किसको पड़ी है?। परंछु यह तो परिणाममें पाप तरफ ही जाता है। इसका फल दुराचार धनीति इनके रैक्व जो ग चने तो आश्रय । जो थेडिवहुत धनिक विचार फर दान कर्ते टैः उक्तं फीतिफी मोटी भारी कामना रदती है। आज हम कोई भी सस्या या मदिरे जप्येमे तो वदं पर रयम दमे धिं फी घड़ी भारी नामावी ऐी दिखेगी। धनिकेांशों भी यह छूगता है कि हमसने इस दानसे खगमें एक पयसी रिस कर ली। ग्रीताफ़ी दृष्टिसे ऐसा दान राजसिक है। इसमे भनुष्यकी आध्यात्मिक उपच्तति नहीं ऐ सकती । इस कर्मका राजस संस्फार फिर राजस प्रवृत्ति ही करायेगा। इस लिये ^ दातव्यमिति थद्वानं ' ऐसा दान रृष्णारपण करके ही होना चाहिये। “ श्रीरप्णार्पणमस्तु ' 'इद न मम” ऐसे अर्थपूर्ण घाक्येंफी योजना प्राचीन अंश्रा्म इसी छिये मिलती ऐ जो অনি বাথ ই थहां तो इमफों अध्यात्मफी इृष्टिसं, गीताझ़ी दष्टिसे देखना है। सामाजिक हितकी दृ, समाज कुछ अच्छा उपयुक्त काम दे जाता है इस दृष्टिसे थंद्र राजल काग भौ थेडजहुत उपयेगी होता ऐ यह यात अछूग ऐ।




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