स्वाहा देवा अमृता मादयन्ताम् | Swaha Deva Amrita Madayantam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्रह्मणो श्रीर उपनिषदो के प्रतीक स्वाहा : ३ तीन निस्सन्देह वाद्‌ से दाहिनी भोर को लिखी जाती यो” भ्रीर सम्भवतः एकको दाहिनो श्लोर से बाई! शोर को लिखा जाता होगा । यद्यपि श्रभी तक सभी मुद्रा- चित्रों एवं लेखों का अनुवाद सम्भव नहीं हो सका है, परस्तु श्रभी तक जो कुछ ' भी पढ़ने में सफलता मिली है उससे इतना स्पष्ट है कि सिन्घुधाटी-सभ्यता में ब्राह्मरा-ग्रंथों श्ौर उपनिषदों के प्रतीक अचुरता से उपलब्ध हैं । ये प्रतीक न केवल हडप्पा से प्राप्त मुद्राचित्रों में पाए गए हैं, श्रपितु इनका श्रस्तित्व उन मुद्रा- . चित्रों पर भी पाया जाता है जो मोहेनजोदरों की निम्ततर एवं निम्नतम स्तर -की गहराई पर पाए गए हैं। इसके श्रतिरिक्त इनके लेखों की विशेषता यह है कि भ्रभी तक मुझे ऐसा कोई लेख नहीं मिला जो किसो न किसी दाशंनिक ' अथवा घामिक तत्त्व की श्रोर संकेत न करता हो । भविष्य के अनुसन्धान का “ क्या परिणाम हो ? इस पर अभी कुछ कहना कठिन है, परन्तु श्रब तक की उप- ` लब्धियों के श्राधार पर मुझे सिन्धुघाटी-सभ्यता ब्राह्मण-ग्रंथों श्रौर उपनिषदों के समय की प्रतीत होती है । : ` यह निष्कषे निस्सन्देह भारतीय इतिहास को कई मान्यताओ्रों को घराशायी “करता है । मोहेनजोदरो प्रौर हडप्पा के लेखों मेँ श्रग्नि, इद्र, इदु, वृत्र, वरुण, ` `. भज, श्रजा, श्येन, उमा, उषा, उखा, क, श्रन; श्रप ध्रादि शब्दों का उन्हीं भ्र्थो में प्रयुक्त होता जिनमें वे ब्राह्मणों एवं उपनिषदों में होते हैं, सिन्धुघाटी को ৃ बह सभ्यता को उत्तरवेदिक काल का सिद्ध करता है। इसके फलस्वरूप एक ओर : “तो सहिताकाल को ईसा से हजारों वर्ष पूर्व सरकाना पड़ता हैं और दूसरी भ्रोर ... वंदिक लोगों के श्रांदि. देश की समस्या प्र पुनविचार करने को श्रावश्यकता पड़ जाती है। सिन्धुघाटी के लेखों से तद्॒तं, वषट्‌, प्रणव श्रादि छाब्दों की : « व्युत्पत्तियों पर तथा ब्राह्मणग्रंथों में प्राप्त विचित्र समीकरणों अथवा पर्याय-योज- /.. नाश्रों पर जो नवीन प्रकाश पड़ता है उससे यह स्पष्ट हो जातः है कि किस प्रकार ` भारतोय योग, मन्त्र, तन्त्र, श्रागम, पुराण, दौवमत, शाक्तमत श्रादि का स्वाभाविक .. “सम्बन्ध वंदिक परम्परा-से जुड़ा हुआ है । इसमें सन्देह नहीं कि मेरे इन निष्कर्षो के; के विरोघ में विद्वानों ने पहिले से ही अनेक प्रमाण प्रस्तुत कर रक्‍्खे है, परः ^. ैरा अनुमान. है कि जैसे-जैसे 'स्वाहां में सिन्धुघाटी के मुद्राचित्रों एवं लेखों र | “की व्याख्यां क्रमशः निकलती जाएगी वेसे-वंसे वे प्रमाण निराधार सिद्ध होते ५ ' । (१) देखिए लिपिद्वय पटल १ तथा लिपित्रय पटलं २।. ` ~. (२). देखिए लिपिश्रय पटल ३। ^




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