मैं भूल नहीं सकता | Main Bhul Nahin Sakata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माताजी १५ तक माताजी का श्रादेब था कि एक थन का दूध वचाकर छोडा जाय । जानवरो कौ चिकित्सा में मी काफी दखल था । कूत्ते-विल्ली मे नफरत थी । कहती थी कि कुत्ता गदा और बिल्ली विश्वासधातक होती है, लेकिन रग-विरगी चिडिया, तोते-मेना वहत पसद आते थे और उनकी रक्षा करती थी। डाक्टरी की तरफ माताजी का खास रुझान था। वगैर किसी परीक्षा पास किये भ्रच्छा खासा भ्रम्यास और जानकारी हो गई थी । मनुष्य का ढठाचा और उसकी वनावट और दिल, दिमाग, कान, आख सब अगो की क्रियाए खूब श्रच्छी तरह जानती थी । स्त्री-जाति की वीमारिया श्रीर प्रसूति इत्यादि के मामले में तो उनकी योग्यता असाधारण थी । घर में वहू-वेटियो का ही नही, वल्कि महल्ले के रहनेवाले और प्रयाग में हाते के नौकर-चाकरो में भी माताजी का ही इलाज औरतो-बच्चों का हुआ करता था | हिकमत और आयुर्वेदिक दवाओो से श्रच्छी जानकारी थी। मरीज कौ देखभाल, सेवा भौर नसिग भी वडी रचि तथा तन-मन से करती थी । ये गुण तो थे ही, परतु जो बात उनकी तरफ हरएक को खीचती थी, वह था उनका स्वभाव । क्या वडे, क्या बूढ़े और क्या वच्चे, सव उनसे खुश रहते ये 1 पुराने खयाल की वडी-वूढी ग्रौरतो मेँ माताजौ को वड कदर यी । विरादरी के सब रस्म-रिवाज, शादी-व्याह के अवसर पर लेना- देता, विधिपूर्वक पूजा-पाठ इत्यादि सव मामलों में माताजी की राय मागी जाती थी श्रौर उसपर श्रमल होता था । घर मेँ स्कूल श्रौर कालेज के पढने- वाले वालक श्रौर वालिकाए श्रम्माजी के पास रुचि से बैठा करते थे । भारत का इतिहास उनको याद या } गाना-वनाना सीखा नही था श्रौर न जानती थी, मगर सुनने का वडा गौक धा । मेरौ चडकौ लीला का गला वहत ग्रच्या था। मीराके भजने वदे प्रेमसे गाती यौ । माताजी घटो सुनती यौर लीन हो जाती । मगर सबसे अधिक तो उनकी पूछ-ताछ थौ कुटव के पुरूपो मे । हमारे घर में ईश्वर की दया से सव ही है॑ जज, वकील, डाक्टर, इजीनियर,




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